हाल ही में संसदीय स्थायी समिति (PSC) ने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों के कंटेंट और डिजाइन में सुधार हेतु रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
पाठ्यपुस्तकों में गैर-ऐतिहासिक तथ्यों के संदर्भो की पहचान करने के लिए समिति का गठन किया गया था। इस समिति का उद्देश्य भारतीय इतिहास के सभी चरणों का आनुपातिक संदर्भ सुनिश्चित करना और महान उपलब्धियां प्राप्त करने वाली महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डालना था।
समिति की प्रमुख सिफारिशें
- पाठ्य-पुस्तक के कंटेंट, ग्राफिक्स और लेआउट, पूरक सामग्री एवं शैक्षणिक दृष्टिकोणों से संबंधित अनिवार्य मानकों को विकसित किया जाना चाहिए।
- चित्रों, ग्राफिक्स, क्यूआरकोड और अन्य ऑडियो-विजुअल कंटेंट के उपयोग के माध्यम से बच्चों के अधिक अनुकूल पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता है।
- प्राथमिक विद्यालय की पाठ्य पुस्तकों को दो उद्देश्यों की पूर्ति करनी चाहिए: शिक्षा के मुख्य घटकों (पढ़ना, लिखना आदि) को एक मजबूत आधार प्रदान करना और छात्रों में जिज्ञासा पैदा करना।
- पाठ्य पुस्तकों में विभिन्न राज्यों और जिलों के अब तक अज्ञात उन पुरुषों एवं महिलाओं के जीवन विवरण को शामिल करना चाहिए, जिन्होंने हमारे राष्ट्रीय इतिहास, गौरव तथा एकता को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
- ऐतिहासिक व्यक्तित्वों और स्वतंत्रता सेनानियों के गलत चित्रण में सुधार किया जाना चाहिए।
- नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में अपनाई गई शैक्षिक पद्धतियों का अध्ययन किया जाना चाहिए। साथ ही, उन पद्धतियों को शिक्षकों के लिए एक आदर्श संदर्भ के रूप में स्थापित करने हेतु उन्हें उपयुक्त रूप से संशोधित किया जाना चाहिए।
- पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों को आधुनिक विज्ञान से जोड़ा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दर्शन, विज्ञान, गणित आदि क्षेत्रों में प्राचीन भारत के योगदानों को भी पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।
स्रोत – द हिन्दू