महिला आरक्षण विधेयक
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसमें संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
पृष्ठभूमि:
- 81वां संविधान संशोधन विधेयक 1996 में लोकसभा में पेश किया गया। इसमें संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने की मांग की गई| विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया था, लेकिन लोकसभा भंग होने के बाद विधेयक रद्द हो गया।
- 1998 में, 12वीं लोकसभा में इस विधेयक को दोबारा पेश किया गया। इस बार भी कोई समर्थन नहीं मिलने के बाद यह बिल रद्द हो गया।
- 2008 में महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा में फिर से पेश किया गया और बाद में इसे संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया, जिसने विधेयक को बिना किसी देरी के वर्तमान स्वरूप में पारित करने की सिफारिश की। 2010 में, राज्यसभा ने इस विधेयक को दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दिया था|
- हालाँकि, कैबिनेट के भीतर मतभेदों के कारण, विधेयक को कभी भी लोकसभा में नहीं पेश किया जा सका और 15वीं लोकसभा के विघटन के साथ यह समाप्त हो गया।
विधानमंडलों में महिला आरक्षण की आवश्यकता क्यों ?
- यह मुद्दा इसलिए चर्चित हो रहा है, क्योंकि लोकसभा चुनाव लड़ने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है, दूसरे लोकसभा चुनाव (1957) में सिर्फ 45 महिला उम्मीदवार थी, जो बढ़कर 2019 में 726 हो गई।
- महिलाओं का मतदान प्रतिशत भी लगातार बढ़ रहा है। 1962 में जहाँ 62% पुरुष मतदाता थे, वहीं महिला मतदाता की संख्या 46.6% थी।
- 2019 के लोक सभा चुनाव में 67% की तुलना में 67.2% वोटिंग के साथ महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। इसके अनुरूप, संसद में महिला उम्मीदवारों की संख्या भी बढ़ी है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- पहली लोकसभा में कुल 489 सदस्यों में से 22 महिला सांसद थीं।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 78 है, जो कि पिछली लोक सभा चुनावों में सबसे अधिक है, लेकिन यह अभी भी कुल सदस्यों का केवल 14.36% है। यह महिला आरक्षण विधेयक द्वारा महिलाओं के लिए अलग रखी जाने वाली 33% सीटों के आधे से भी कम है।
- ग्लोबल जेंडर गैप 2023 के अनुसार, 146 देशों के सूचकांक में भारत 127वें स्थान पर है।
- 1988 में, महिलाओं के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना ने सुझाव दिया कि महिलाओं को पंचायत से संसद स्तर तक आरक्षण प्रदान किया जाए। तदनुसार, संविधानमें 73वें और 74वें संविधान संशोधन पारित किए गए जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को अनिवार्य रूप से महिलाओं के लिए पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों की एक तिहाई सीटें आरक्षित करनी पड़ीं।