WHO पारंपरिक चिकित्सा पर वैश्विक शिखर सम्मेलन
हाल ही में प्रथम “विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पारंपरिक चिकित्सा पर वैश्विक शिखर सम्मेलन” गुजरात के गांधीनगर में आयोजित किया गया है।
इस शिखर सम्मेलन में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के समाधान में ‘पारंपरिक, पूरक और एकीकृत चिकित्सा’ (Traditional Complementary and Integrative Medicine: TCIM) की भूमिका पर परिचर्चा की गई।
पहली बार इस तरह के शिखर सम्मेलन में ‘पारंपरिक, पूरक और एकीकृत चिकित्सा’ के वित्त पोषण, देशज लोगों के स्वास्थ्य, गुणवत्ता आश्वासन, पारंपरिक चिकित्सीय ज्ञान, जैव विविधता, व्यापार, रोगी सुरक्षा इत्यादि विषयों पर चर्चा की गई।
इस शिखर सम्मेलन की थीम थी, “सभी के लिए स्वास्थ्य और कल्याण की ओर (Towards Health and Well-being for All)” ।
पारंपरिक चिकित्सा:
- पारंपरिक चिकित्सा से आशय बीमारियों के उपचार, निदान और रोकथाम या लोगों के कल्याण के लिए स्वास्थ्य पद्धतियों, दृष्टिकोणों, ज्ञान व मान्यताओं से है। इसमें जड़ी-बूटियों व आध्यात्मिक थेरेपी से उपचार किया जाता है ।
- इसमें आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी), यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) तथा सोवा रिग्पा शामिल हैं।
- भारत में 2014 से 2023 के बीच पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में 8 गुना वृद्धि दर्ज की गई है।
पारंपरिक चिकित्सा के लाभ:
- यह सहज रूप से सुलभ और किफायती उपचार प्रणाली है।
- इस पद्धति में रोगी विशिष्ट उपचार पर ध्यान दिया जाता है तथा संभावित सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
- इसके इलाज से कोई साइड इफेक्ट नहीं होता या नाममात्र का होता है।
- इसमें किसी व्यक्ति की समग्र देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
पारंपरिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए किए गए उपाय:
- गुजरात के जामनगर में WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (GCTM) की स्थापना की गई है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (PHC ) पर अस्ताना घोषणा पत्र, 2018 अपनाया गया है। यह घोषणा-पत्र PHC सेवा प्रदान करने में पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान और तकनीक को शामिल करने की आवश्यकता को स्वीकार करता है।
- आयुष प्रणाली के बारे में प्रामाणिक जानकारी प्रसारित करने के लिए 39 देशों में आयुष सूचना प्रकोष्ठ (AYUSH Information Cell) स्थापित किए गए हैं।
स्रोत – द हिन्दू