टोंगा में ज्वालामुखी विस्फोट
टोंगा में हाल ही में ज्वालामुखी विस्फोट उत्पन्न हुआ जिससे उसका प्लूम मध्यमंडल (mesosphere) तक पहुंच गया है।
विदित हो कि पृथ्वी के वायुमंडल की मध्यमंडल परत लगभग 50 से 85 कि.मी. तक विस्तारित है।
ज्वालामुखी की अत्यधिक ऊष्मा और समुद्र से आर्द्रता का एक विस्फोटक संयोजन निर्मित होता है। इसी संयोजन ने ज्वालामुखी प्लूम (राख, धुआं, गैस, जल आदिका मिश्रण) को इस तरह की आश्चर्जनक ऊंचाई तक ले जाने में मदद की है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह तीन दशकों में विश्व में कहीं भी दर्ज की गई ज्वालामुखी विस्फोट की सबसे बड़ी घटना है।
ज्वालामुखी विस्फोट का प्रभाव
- ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान राख/धूल/एयरोसोल्स वायुमंडल में मुक्त होते हैं। यह सूर्य के प्रकाश को बाधित कर छाया निर्मित करते हैं और अस्थायी शीतलन का कारण बनते हैं।
- ये विस्फोट बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों, जैसे- जल वाष्प और कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में ” मुक्त करते हैं। इससे ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव बढ़ जाता है।
- इससे स्थानीय मौसम में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आ सकता है, जैसे- तेज आंधी तूफान आदि।
- इस विस्फोट ने एक विनाशकारी सुनामी को सक्रिय किया है, जो टोंगा से प्रवाहित हो सकती है।
टोंगा ज्वालामुखी के बारे में
- यह प्रशांत महासागर के “रिंग ऑफ फायर” क्षेत्र में स्थित है। यह द्वीपीय राष्ट्र टोंगा से मात्र 60 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।
- रिंग ऑफ फायर क्षेत्र में विवर्तनिक प्लेटें, प्रविष्ठन क्षेत्र (सबडक्शन जोन) बनाते हुए एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं। इस प्रविष्ठन के साथ, चट्टानें पिघल कर मैग्मा बन जाती हैं और पृथ्वी की सतह पर आ जाती हैं। ये ज्वालामुखीय गतिविधि का कारण बनती हैं।
- टोंगा के सन्दर्भ में, विवर्तनिक प्रक्रिया के फलस्वरूप प्रशांत प्लेट इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट और टोंगा प्लेट के नीचे खिसक गई थी।
स्रोत –द हिन्दू