वन धन विकास केंद्र पहल
- भारत सरकार द्वारा देश के 22 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेशों में 1770 वन धन केंद्रों के लिए मंजूरी दी जा चुकी है।
‘वन धन विकास केंद्र’ की पृष्ठभूमि
- 14 अप्रैल, 2018 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में वन धन पायलट परियोजना की शुरुआत हुई थी।
- आदिवासियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए स्थानीय समुदायों की सहभागिता बहुत आवश्यक है इसके लिये ज़रूरी उन्हें उनकी जंगल-ज़मीन से विस्थापित न कर , प्रकृति और पर्यावरण में मौजूद संसाधनों का लाभ दिलाने के उद्देश्य हेतु आदिवासियों को विकास के साझीदार के तौर पर देखा जाए।
- इसी उद्देश्य के साथ जनजातीय कार्य मंत्रालय ने इन समुदायों के लिये जन धन, वन धन तथा गोवर्धन योजनाओं को मिलाकर देश के जनजातीय जिलों में वन धन विकास केंद्र बनाने की योजना शरू की ।
- यह योजना केंद्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण विभाग के तौर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय और राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण एजेंसी के रूप में ट्राइफेड के माध्यम से लागू की गई ।
- इस पहल का उद्देश्य जनजातीय समुदाय के वनोत्पाद एकत्रित करने वालों और कारीगरों के आजीविका आधारित विकास को बढ़ावा देना है।
- गौरतलब है कि गैर-लकड़ी वनोत्पाद देश के लगभग 5 करोड़ जनजातीय लोगों की आय और आजीविका का प्राथमिक स्रोत है।
- देश में अधिकतर जनजातीय ज़िले वन क्षेत्रों में स्थित हैं और जनजातीय समुदाय पारंपरिक तरीको से गैर-लकड़ी वनोत्पाद एकत्रित करने और उनके मूल्यवर्द्धन में पारंगत होते हैं।
- इस पहल के अंतर्गत कवर किये जाने वाले प्रमुख गौण वनोत्पादों की सूची में इमली, महुआ के फूल, महुआ के बीज, पहाड़ी झाड़ू, चिरौंजी, शहद, साल के बीज, साल की पत्तियाँ, बाँस, आम (अमचूर), आँवला (चूरन/कैंडी), तेज़पात, इलायची, काली मिर्च, हल्दी, सौंठ, दालचीनी, आदि शामिल हैं।
- इस पहल का उद्देश्य, आदिवासी संग्राहकों तथा कारीगरों की लघु वनोत्पादों (MFPs) पर आधारित आजीविका के विकास को बढ़ावा देना है।
- इस पहल के तहत, जमीनी स्तर पर लघु वनोत्पादों के प्राथमिक स्तर पर मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देकर आदिवासी समुदाय को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है।
- इस पहल के माध्यम से, गैर-इमारती लकड़ी के उत्पादन की मूल्य श्रृंखला में आदिवासियों की हिस्सेदारी, वर्तमान में 20% से बढ़कर लगभग 60% होने की उम्मीद है।
ट्राइफेड
- ट्राइफेड की स्थापना जनजातीय मामलों के मंत्रलय के अंतर्गत एक राष्ट्रीय नोडल एजेंसी के रूप में 1987 में की गई थी। यह सभी राज्यों के आदिवासी लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में काम कर रही है।यह बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 1984 के तहत पंजीकृत है
- यह मुख्य रूप से दो कार्य करता है पहला-लघु वन उपज विकास, दूसरा खुदरा विपणन एवं विकास।
- ट्राइफेड का मूल उद्देश्य आदिवासी लोगों द्वारा जंगल से एकत्र किये गए या इनके द्वारा बनाये गए उत्पादों को बाजार में सही दामों पर बिकवाने की व्यवस्था करना है।
स्रोत: पीआईबी