‘निधि कंपनी’ के नियमों में संशोधन
हाल ही में केंद्र सरकार ने निधि नियम, 2014 में संशोधन किए हैं। यह संशोधन ऐसे समय में किये गए हैं, जब ‘निधि कंपनियों’ की संख्या में व्यापक वृद्धि दर्ज की गई है। इन संशोधनों का उद्देश्य इन कंपनियों के शासन में सुधार करना, और जनता के हितों की रक्षा करना है।
निधि नियम में प्रमुख संशोधन
- 10 लाख रुपये की शेयर पूंजी के साथ निधि के रूप में स्थापित किसी सार्वजनिक कंपनी को सबसे पहले स्वयं को केंद्र सरकार से ‘निधि’ कंपनी के रूप में घोषित करवाना होगा। इससे पहले, किसी कंपनी को ऐसी घोषणा करवाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
- कंपनी के प्रमोटर्स और निदेशकों को नियमों में निर्धारित मानदंडों को पूरा करना होगा।
निधि कंपनी के बारे में
- ये गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के समान होती हैं। एक निधि कंपनी का गठन उसके सदस्यों से धन उधार लेने और उधार देने के लिए किया जाता है। यह अपने सदस्यों के बीच बचत की आदतों को विकसित करती है। यह परस्पर लाभ के सिद्धांत पर कार्य करती है।
- इसे RBI से लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन कंपनी अधिनियम के तहत अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
- कारपोरेट कार्य मंत्रालय इसके परिचालन संबंधी मामलों को नियंत्रित करता है। RBI को इसकी जमा स्वीकारने वाली गतिविधियों हेतु निर्देश जारी करने की शक्ति प्राप्त है ।
- इसे चिट फंड, हायर-परचेज फाइनेंस, लीजिंग फाइनेंस, इंश्योरेंस या सिक्योरिटीज से जुड़े व्यवसाय करने की अनुमति नहीं है। यह अपने सदस्यों के अतिरिक्त, किसी अन्य व्यक्ति से न तो नकद जमा स्वीकार कर सकती है, न ही किसी अन्य व्यक्ति को उधार दे सकती है।
- निधि कंपनियों में केवल व्यक्तिगत सदस्यों को ही शामिल होने की अनुमति होती है।
स्रोत –द हिन्दू