हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) शरद अरविन्द बोबडे ने गोवा के समान नागरिक संहिता की सराहना करते हुए इससे सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए राज्य में जाने के लिए “शैक्षणिक वार्ता” में शामिल “बुद्धिजीवियों” को प्रोत्साहित किया।
इससे पहले सितंबर 2019 में, गोवा के एक विशेष धर्म के नागरिक से संबंधित एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने गोवा को समान नागरिक संहिता के “चमकदार उदाहरण” के रूप में पेश किया था।
समान नागरिक संहिता क्या है?
एक समान नागरिक संहिता पूरे देश या किसी क्षेत्र विशेष (जहां यह लागू हो) के लिए एक कानून का प्रावधान करती है, जो वहाँ से सम्बंधित समस्त धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे शादी, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि विषयों के लिए लागू होगी।
संवैधानिक प्रावधान:
संविधान निर्माताओं ने भारत के लिए एक समान नागरिक संहिता की “आशा और अपेक्षा” की थी और इसी उद्देश्य के साथ राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 44 के तहत यह प्रावधान किया था कि राज्य पूरे भारत के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 37 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार नीति निदेशक तत्व किसी न्यायालय मे लागू नही करवाये जा सकते अर्थात यह तत्व वैधानिक न होकर राजनैतिक स्वरूप रखते है तथा मात्र नैतिक अधिकार रखते है। अतः अनुच्छेद 44 न्यायसंगत नहीं हैं अर्थात इन्हें किसी भी न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है लेकिन इसके लिए निर्धारित सिद्धांत शासन में मूलभूत हैं।
भारत के लिए इसकी उपयोगिता:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभाजित नियमों के स्थान पर सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून की आवश्यकता होती है।
भारत में किसी भी धार्मिक समुदाय से सम्बन्ध महिलाओं की स्थिति एकसमान नहीं है जिस कारण उन्हें विभिन्न अनावश्यक धार्मिक परम्पराओं का पालन करना पड़ता है। पूरे देश में महिलाओं को सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने हेतु एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है।
न्यायालयों ने भी प्रायः अपने निर्णयों में कहा है (जिनमें शाहबानो मामले का फैसला भी शामिल है) कि सरकार को समान नागरिक संहिता की ओर कदम बढ़ाना चाहिए किन्तु पिछले साल, विधि आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि एक समान नागरिक संहिता न तो संभव है और न ही वांछनीय।
भारत में समान संहिता की वर्तमान स्थिति:
भारतीय कानून अधिकांश नागरिक मामलों में एक समान संहिता का पालन करते हैं जिनमें से कुछ- भारतीय अनुबंध अधिनियम, नागरिक प्रक्रिया संहिता, माल अधिनियम की बिक्री, संपत्ति अधिनियम का हस्तांतरण, भागीदारी अधिनियम आदि हैं,यद्यपि इन कानूनों में कई बार संशोधन किए गए हैं और इसलिए कुछ मामलों में इन धर्मनिरपेक्ष नागरिक कानूनों में भी विविधता पायी जाती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस