केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) कार्यप्रणाली का मामला
हाल ही में कानून मंत्री ने स्पष्ट किया है कि, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) अब वास्तव में अपना कर्तव्य निभा रहा है, यह अब “पिंजरे में बंद तोता” नहीं है ।
- हाल ही में, कानून मंत्री ने भारत की शीर्ष जांच एजेंसी के रूप में CBI की उच्च पेशेवर कार्यप्रणाली और उच्च दोष सिद्धि दर (लगभग 70%) के लिए प्रशंसा की है। उनके अनुसार लोग इस एजेंसी पर विश्वास करते हैं।
- CBI को रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में देखा जाता है।
- वर्ष 2013 में, उच्चतम न्यायालय ने केंद्र द्वारा CBI की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप (कोयला घोटाला मामले में) के कारण इसे “पिंजरे का तोता” कहा था।
CBI से संबंधित समस्याएं
- यह एजेंसी प्रधान मंत्री कार्यालय के तहत कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक विभाग को रिपोर्ट करती है। इसलिए, इसे पूर्ण सांविधिक दर्जा प्राप्त नहीं है। साथ ही, इसकी स्वायत्तता पर भी प्रश्न उठते रहे हैं।
- CBI, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन (DSPE) अधिनियम 1946 से अपनी शक्तियां प्राप्त करती है। इस अधिनियम का प्राथमिक क्षेत्राधिकार दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों तक सीमित है।
- कुछ राज्यों ने सामान्य सहमति (जनरल कंसेंट) को वापस ले लिया है। सामान्य सहमति (जनरल कंसेंट) के अभाव में CBI को जांच के लिए राज्य सरकार से मामला दर मामला आधार पर सहमति लेने की आवश्यकता होती है।
- आंतरिक विवादों और कुछ मामलों में निष्क्रियता के कारण इस संस्था की विश्वसनीयता का मुद्दा भी समय-समय पर उठता रहा है। वर्ष 2018 में CBI निदेशक और विशेष निदेशक के बीच आंतरिक विवाद एक ऐसा ही मामला था।
स्रोत –द हिन्दू