सुप्रीम कोर्ट का ऑनलाइन RTI पोर्टल
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) आवेदनों के लिए ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की है।
इससे सुप्रीम कोर्ट में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत दाखिल किए गए आवेदनों के जवाब अब ‘पोर्टल’ के जरिए दिए जाएंगे।
इससे पहले, शीर्ष अदालत से सूचना प्राप्त करने के लिए डाक द्वारा या व्यक्ति को स्वयं वहां जाकर RTI आवेदन दायर करना पड़ता था ।
RTI अधिनियम, 2005 के तहत कोई नागरिक सार्वजनिक संस्थाओं के नियंत्रण वाली सूचना प्राप्त कर सकता है। इसका उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है।
केवल भारतीय नागरिक इस पोर्टल का उपयोग कर सकते हैं। इसे RTI आवेदन दाखिल करने, प्रथम अपील करने और शुल्क का भुगतान करने आदि के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
यह पोर्टल RTI अधिनियम के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा जवाब देने की प्रक्रिया को सुगम बनाएगा।
इस पोर्टल पर एक ऐसी सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है, जिसका उपयोग कर दृष्टिबाधित लोग भी न्यायालय के निर्णय से अवगत हो सकेंगे।
इससे पहले, वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने निर्णय दिया था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद भी RTI अधिनियम के “लोक प्राधिकरण (Public Authority)” की परिभाषा के अंतर्गत आता है।
RTI अधिनियम की धारा 2(h) के अनुसार, संविधान द्वारा या उसके तहत या संसद और राज्य विधान-मंडल के कानून द्वारा स्थापित कोई भी प्राधिकरण या निकाय या स्व- सरकार की संस्थाओं को लोक प्राधिकरण माना जाएगा।
RTI के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सीमाएं:
इससे अदालतों का प्रशासनिक बोझ बढ़ जाता है।
न्यायाधीशों के निजता के अधिकार से जुड़ी चिंताएं भी सामने आती हैं।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान
इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है। यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
प्राप्त सूचना की विषयवस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।
इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
स्रोत – द हिन्दू