भारत में वैवाहिक बलात्कार की स्थिति
हाल ही में वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने विभाजित निर्णय दिया है ।
वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण पर दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किये हैं।
यह निर्णय पतियों को बचाने वाले बलात्कार कानूनों में मौजूद अपवाद को समाप्त करने की मांग वाली याचिकाओं पर दिया गया है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित किया गया है। इसमें आपसी सहमति संबंधी कई धारणाओं को सूचीबद्ध किया गया है। यदि इनका उल्लंघन किया जाता है, तो पुरुष को बलात्कार का अपराधी माना जाएगा।
हालांकि, धारा 375 की अपवाद संख्या-2 वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे से बाहर करती है। इसमें कहा गया है कि किसी पुरुष का उसकी स्वयं की पत्नी (जो 15 वर्ष से कम आयु की नहीं है) के साथ लैंगिक कृत्य बलात्कार नहीं है।
धारा 375 को वर्ष 2013 में संशोधित कर सहमति से लैंगिक संबंध बनाने की आयु को 18 वर्ष कर दिया गया था। यह संशोधन इस धारा को अन्य कानूनों के अनुरूप बनाने के लिए किया गया था। अन्य कानूनों में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को ‘बालक/बालिका’ माना गया है।
लेकिन इसके तहत धारा 375 की अपवाद संख्या-2 में संशोधन नहीं किया गया था। इसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, जहाँ पति 15 से 18 वर्ष की आयु के बीच की अपनी नाबालिग पत्नी के साथ बलात लैंगिक संबंध बना सकता है।
इस संबंध में, इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ मामले में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि अपवाद संख्या-2 का मामला जहाँ तक 18 साल से कम आयु की लड़की से संबंधित है, उसे रद्द किया जा सकता है।
हालांकि, यह मामला वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे से संबंधित नहीं था। साथ ही, वैवाहिक बलात्कार के मामले में 15 वर्ष की जगह 18 वर्ष की शर्त को धारा 375 की अपवाद संख्या-2 में शामिल करने के लिए अभी तक कोई संशोधन नहीं किया गया है।
स्रोत –द हिन्दू