स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट-2023
चर्चा में क्यों?
- हाल ही मेंअजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट द्वारा “स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023” रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जो भारतीय कार्यबल के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
- यह रिपोर्ट बेरोजगारी दर, महिलाओं की भागीदारी, अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता और जाति-आधारित कार्यबल गतिशीलता का विश्लेषण करती है।
रिपोर्ट के महत्वपूर्ण बिंदु :
नियमित वेतनभोगी नौकरियों में बदलाव :
- 1980 के दशक से चली आ रही स्थिरता के बाद वर्ष 2004 से नियमित या मासिक आधार पर वेतन प्राप्त करने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।
- 2004 और 2019 के बीच नियमित वेतन या वेतनभोगी श्रमिकों की हिस्सेदारी पुरुषों के लिए 18% से बढ़कर 25% और महिलाओं के लिए 10% से 25% हो गई।
- 2017 और 2019 के बीच सालाना लगभग 5 मिलियन नियमित वेतन वाली नौकरियों का सृजन किया गया, जो 2004 से 2017 के बीच 3 मिलियन थी|
लिंग वेतन अंतर:
- 2004 में, वेतनभोगी महिला कर्मचारी की आय पुरुषों की आय का 70% थीं।
- वर्ष 2017 तक यह अंतर कम हो गया और महिलाओं की आय पुरुषों की कुल आय की तुलना में 76% हो गई थी। तब से यह अंतर वर्ष 2021-22 तक स्थिर बना हुआ है।
बेरोजगारी दर और शिक्षा की स्थिति:
- कुल बेरोजगारी दर 2017-18 में 8.7% से घटकर 2021-22 में 6.6% हो गई।
- 25 वर्ष से कम आयु के स्नातकों में 42.3% की उच्च बेरोजगारी दर थी।
- उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले व्यक्तियों के मामले में बेरोज़गारी दर 21.4% थी।
महामारी के बाद का कार्यबल:
- कोविड-19 महामारी के बाद 60% महिलाएँ स्व-रोज़गार में थीं, जबकि पहले यह आँकड़ा 50% था।
- कार्यबल की भागीदारी में वृद्धि के साथ-साथ स्व-रोज़गार आय में भी कमी आई।
अंतरपीढ़ीगत और जातिगत गतिशीलता:
- अंतर-पीढ़ीगत ऊर्ध्वगामी गतिशीलता में वृद्धि हुई, जो सामाजिक-आर्थिक प्रगति का संकेत है।
- सामान्य जातियों की तुलना में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का रुझान अभी भी काफी कमजोर बना हुआ है।
- वर्ष 2018 में आकस्मिक वेतन वाले कार्य में लगे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के 75.6% पुरुषों के बेटे भी आकस्मिक वेतन वाले कार्य में शामिल थे। इसकी तुलना में वर्ष 2004 में यह आँकड़ा 86.5% था, जो दर्शाता है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित आकस्मिक वेतन वाले श्रमिकों के बेटे अन्य प्रकार के रोज़गार, विशेष रूप से अनौपचारिक नियमित वेतन वाले कार्य में शामिल हो गए हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में जाति के अनुसार कार्यबल भागीदारी में बदलाव आया है। आकस्मिक वेतन वाले कार्य में अनुसूचित जाति के श्रमिकों की हिस्सेदारी काफी कम हो गई है, लेकिन सामान्य जाति वर्ग में यह कमी अधिक स्पष्ट है।
नौकरी सृजन और वेतनभोगी रोजगार में आने वाली चुनौतियाँ:
- आर्थिक विकास आनुपातिक रूप से नौकरियाँ पैदा नहीं करता है; जीडीपी वृद्धि के साथ रोजगार सृजन क्षमता घटती है।
- कृषि से अन्य क्षेत्रों में संक्रमण वेतनभोगी रोजगार की गारंटी नहीं देता है।
- वैतनिक रोज़गार की आकांक्षा के बावजूद अधिकांश वैतनिक कार्य अनौपचारिक हैं, जिनमें अनुबंधों और लाभों का अभाव देखा गया है। उचित लाभ एवंअच्छी वेतन वाली नौकरियाँ कम महत्वपूर्ण होती जा रही हैं।
बेरोज़गारी पर नियंत्रण के लिये सरकार द्वारा की जाने वाली पहले:
- रोज़गार मेला
- स्टार्ट-अप इंडिया योजना
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
- पीएम दक्ष योजना (PM-DAKSH)
- स्माइल (SMILE) योजना
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस