संसद की स्थायी समिति (PSC) द्वारा मनरेगा संचालन के लिए सिफारिशें
हाल ही में संसदीय स्थायी समिति ने मनरेगा की समीक्षा की है। जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास पर संसद की स्थायी समिति (PSC) द्वारा मनरेगा के संबंध में कुछ सिफारिशें की हैं।
विदित हो कि ये सिफारिशें ऐसे समय में प्रस्तुत की गई हैं, जब मनरेगा उन प्रवासी कामगारों के लिए सुरक्षा कवच बन गया है, जो कोविड-19 के दौरान अपने गांवों को लौट आए हैं। साथ ही, पिछले वित्तीय वर्ष में काम की मांग अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी।
PSC रिपोर्ट में वर्णित की गई बाधाएं
- समय पर धनराशि जारी करने के मामले में राज्यों के साथ प्रभावी समन्वय का अभाव है।
- राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर प्रक्रियाओं से जुड़ी आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा नहीं किया जाता है।
- कार्य पूरा होने के तीन दिनों के भीतर हाजिरी रजिस्टर (कार्यस्थल पर कर्मचारी की उपस्थिति को दर्ज करने वाला रजिस्टर) को अपडेट नहीं करना।
- राज्यों द्वारा मजदूरी या सामग्री का हिस्सा जारी करने हेतु आवश्यक दस्तावेज को जमा करने में देरी की जाती है।
सिफारिशें:
- कार्य के गारंटीकृत दिनों को वर्ष में 100 दिनों से बढ़ाकर कम से कम 150 दिन किया जाना चाहिए।
- आवंटित धनराशि को निर्धारित समय में और वित्तीय रूप से विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करना, ताकि संपूर्ण राशि उचित रीति से व्यय की जा सके।
- मजदूरी दरों को मुद्रास्फीति के अनुरूप सूचकांक से जोड़कर बढ़ाया जाना चाहिए।
- संकट की स्थिति में प्रवास करने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए संपूर्ण देश में एकीकृत मजदूरी दर को लागू किया जाना चाहिए।
- योजना के श्रम बजट की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) – इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का मजदूरी रोजगार प्रदान किया जाता है। इसमें ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को शामिल किया जाता है। यह सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक कार्य करता है।
स्रोत –द हिन्दू