श्रीलंका द्वारा सभी विदेशी ऋणों पर डिफॉल्ट घोषित किया
श्रीलंका ने अंतिम उपाय के रूप में कुल 51 अरब डॉलर के अपने सभी विदेशी कर्ज चुकाने में असमर्थता प्रकट करते हुए स्वयं को डिफॉल्ट घोषित कर दिया है।
- विदित हो कि, यह द्वीपीय देश एक गंभीर आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा है। इससे “सॉवरेन डिफॉल्ट” जैसी स्थिति पैदा हो गई है।
- कर्ज चुकाने की असमर्थता से जुड़ी इस घोषणा का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष समर्थित रिकवरी प्रोग्राम से पहले सभी कर्जदाताओं के साथ उचित और न्यायसंगत व्यवहार सुनिश्चित करना है।
क्या होता है सॉवरेन डिफॉल्ट?
जब एक संप्रभु सरकार निर्धारित समय पर मूलधन और ब्याज का भुगतान करने में विफल रहती है, तो उसे सॉवरेन डिफॉल्ट कहा जाता है।
डिफॉल्ट के परिणाम:
- कर्ज का निपटान करने से सरकार पर ऋणदाताओं का बकाया कुल कर्ज कम हो जाता है। इसके साथ ही, मूलधन और ब्याज की अदायगी भी कम हो जाती है। हालांकि, इससे देश की क्रेडिट रेटिंग कम हो जाती है और निवेशकों के लिए वह कम आकर्षक हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय बॉन्ड बाजार से नए फंड प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
- बाहरी ऋण पर स्वयं को डिफॉल्ट घोषित करने वाला श्रीलंका पहला देश नहीं है। वर्ष 2020 में लेबनान, अर्जेंटीना, बेलीज, जाम्बिया तथा सूरीनाम ने भी स्वयं को डिफॉल्ट घोषित कर लिया था। वर्ष 2015 में ग्रीस (यूनान) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिए कर्ज पर स्वयं को डिफॉल्ट घोषित करने वाला पहला विकसित देश बन गया था।
स्रोत – द हिंदू