दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) को पुनःसक्रिय करने का प्रयास

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) को पुनःसक्रिय करने का प्रयास

हाल ही में नेपाल दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC / सार्क / दक्षेस) को सक्रिय करने का प्रयास कर रहा है।

  • नेपाल ने कहा है कि वह क्षेत्रीय समूह सार्क को सक्रिय करने का प्रयास कर रहा है, जो 2016 से ही अप्रभावी बना हुआ है।
  • विदित हो कि इसका अंतिम द्विवार्षिक शिखर सम्मेलन 2014 में काठमांडू में हुआ था। वर्ष 2016 का सार्क शिखर सम्मेलन पाकिस्तान में होना था ।
  • हालांकि, 2016 में उरी में भारतीय सेना के शिविर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने इसमें भाग नहीं लेने की घोषणा कर दी थी ।
  • बाद में बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने भी भाग लेने से इंकार कर दिया था। अंत में शिखर सम्मेलन को रद्द कर दिया गया था।

सार्क को पुनर्जीवित करने का महत्वः

  • दक्षिण एशिया में व्याप्त साझी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए सार्क को पुनर्जीवित करना जरूरी है।
  • एकीकृत दक्षिण एशियाई मंच, चीन की चुनौती से निपटने के लिए भारत का सबसे शक्तिशाली जवाबी उपाय है।
  • इसका कोई वास्तविक विकल्प भी उपलब्ध नहीं है।
  • बिम्सटेक के सदस्य देशों के बीच साझा पहचान और इतिहास की कमी के कारण यह सार्क का स्थान नहीं ले सकता है ।
  • यह दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है। दक्षिण एशिया व्यापार और लोगों के मध्य संपर्क के मामले में विश्व में सबसे कम एकीकृत क्षेत्रों में से एक है।
  • सार्क इस क्षेत्र के भीतर आपसी विश्वास और शांति के निर्माण में मदद कर सकता है।

सार्क के बारे में

यह एक आर्थिक और राजनीतिक संगठन है। इसकी स्थापना 1985 में हुई थी ।

इसके सदस्य हैं: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका ।

स्रोत – इकोनोमिक टाइम्स

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