सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी

सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी

  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने ओडिशा के निकट एकीकृत परीक्षण रेंज चाँदीपुर से सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी का सफल परीक्षण किया है।
  • यह परीक्षण लंबी दूरी की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल के स्वदेशी संस्करण के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • वर्तमान में ऐसी तकनीक दुनिया के कुछ देशों के पास ही उपलब्ध है।सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट पर आधारित मिसाइल सुपरसोनिक गति से उड़ान भरती है।

सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी क्या होती है ? –

  • यह डीआरडीओ द्वारा विकसित एक मिसाइल प्रणोदन प्रणाली है जो इसे प्रायः रैमजेटनाम से संबोधित किया जाता है।
  • यह प्रणाली ठोस ईंधन पर आधारित है, जो ईंधन के दहन के लिये आवश्यक ऑक्सीजन को हवा से लेती है, इसे एयर-ब्रीदिंग कहते हैं।
  • यह नोजल रहित मोटर तथा बूस्टर मोटर प्रणाली पर आधारित एक प्रक्षेपण रॉकेट है ।
  • ठोस-प्रणोदक रॉकेटों के विपरीत, रैमजेट उड़ान के दौरान वायुमंडल से ऑक्सीजन लेता है। इस प्रकार यह वजन में हल्का है और अधिक ईंधन क्षमता वाला होता है।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन:

  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO), भारत के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
  • यह रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ ही तीनों क्षेत्रों के रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में कार्यरत है।
  • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय के मिलने के बाद हुई।
  • इस संगठन ने इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्रामको पूरा करने की ज़िम्मेदारी ले रखी है ।

उपयोग एवं लाभ

  • सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट (एसएफडीआर) तकनीक के सफल परीक्षण से भारत को वैश्विक स्तर पर तकनीकी लाभ प्राप्त हुआ है।
  • इस तकनीक के इस्तेमाल से भारत लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें विकसित कर पाने में सक्षम होगा।
  • रैमजेट तकनीक पर आधारित मिसाइल या रॉकेट का वजन काफी कम हो जाता है, जिसके कारण रॉकेट के इंजन को अत्यधिक थ्रस्‍ट/शक्ति प्रदान करने के लिए अधिक ईधन की जरुरत नहीं होती है।
  • उल्लेखनीय है रैमजेट तकनीक में मिसाइल या रॉकेट में आक्‍सीजन को भरकर नहीं ले जाया जाता बल्कि वातावरण में मौजूद ऑक्‍सीजन का प्रयोग ईधन के रूप में किया जाता है।
  • रैमजेट तकनीक पर विकसित होने वाले मिसाइल या रॉकेट की गति और दक्षता उच्च होने के साथ ही इसकी लागत अन्य प्रचलित तकनीकों से काफी कम होती है।

स्रोत – द हिन्दू

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