सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के लिए एक फ्रेमवर्क
हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया है।
- इस फ्रेमवर्क से पहले सेबी ने SSEs के लिए कुछ नियम अधिसूचित किए थे। ये नियम सामाजिक उद्यमों (Social Enterprises: SEs) को धन जुटाने के लिए अतिरिक्त विकल्प प्रदान करने हेतु जारी किए गए थे।
- इन नियमों के तहत ऐसे गैर-लाभकारी संगठनों (NPOs) और सामाजिक उद्यमों को SSE में भाग लेने के लिए पात्र माना गया, जिनका प्राथमिक लक्ष्य सामाजिक कार्य और समाज को लाभ पहुंचाना था।
- इसके तहत 16 व्यापक सामाजिक गतिविधियों की अनुमति दी गई है। इनमें भुखमरी, गरीबी व कुपोषण का उन्मूलन; LGBTQIA+ से संबंधित मुद्दे आदि शामिल हैं।
- SSE एक नई अवधारणा है। वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2019-20 के बजट भाषण में पहली बार इसका उल्लेख किया था। इसका उद्देश्य निजी और गैर-लाभकारी संस्थाओं को अधिक पूंजी जुटाने में उनकी मदद करना है।
SSE के लिए तैयार हालिया फ्रेमवर्क पर एक नज़रः
- NPOs को एक धर्मार्थ संस्था के रूप में पंजीकृत होना चाहिए। पंजीकरण प्रमाण-पत्र अनिवार्य रूप से अगले 12 महीनों के लिए वैध होना चाहिए।
- NPO कम-से-कम तीन वर्ष पुराना होना चाहिए।
- SSE के माध्यम से धन जुटाने वाले सामाजिक उद्यमों को ‘एनुअल इम्पैक्ट रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। यह रिपोर्ट प्रत्येक वित्त वर्ष की समाप्ति के 90 दिनों के भीतर प्रस्तुत करनी होगी।
- ‘जीरो कूपन जीरो प्रिंसिपल इंस्ट्रूमेंट्स’ के माध्यम से फंड जुटाने वाले NPOs को अपने विजन, लक्षित समुदाय आदि के बारे में बताना होगा
जीरो कूपन जीरो प्रिंसिपल इंस्ट्रूमेंट्स (ZCZPI) के बारे में
- आमतौर पर, जब कोई संस्था बॉण्ड (डेट सिक्यूरिटी का एक प्रकार) जारी करती है, तो उसे बॉण्ड के परिपक्व होने पर ही ब्याज और मूलधन का भुगतान करना होता है।
- हालांकि, ZCZPI को ऋण के बजाय ‘दान’ की श्रेणी में रखा गया है।
- इसलिए, उधार लेने वाली संस्था को न तो ब्याज का भुगतान करना पड़ता है (जीरो कूपन),न ही मूलधन का भुगतान करना पड़ता है (जीरो प्रिंसिपल)।
स्रोत – द हिन्दू