सिमलिपाल जैवमंडल रिज़र्व

सिमलिपाल जैवमंडल रिज़र्व

  • हाल ही में सिमलिपाल जैवमंडल रिज़र्व (ओडिशा ) में भीषण आग की घटना देखी गई।
  • हालाँकि आग में जैवमंडल रिज़र्व का मुख्य क्षेत्र (Core Area) आग से अछूता रहा। लेकिन इस तरह कि घटनाएं जैवविविधता के लिए बहुत ही घातक होती हैं ।
  • जंगलों में लगी आग मुख्यतःअनियोजित आगहोती है जो अक्सर मानवीय गतिविधियों के कारण या आकाशीय बिजली गिरने जैसी प्राकृतिक घटना के कारण लगती है। अध्ययनों के अनुसार लगभग 90% जंगलों की आग मानव जनित होती हैं।

प्रभाव

मूल्यवान लकड़ी संसाधनों का नुकसान,  जलग्रहण वाले क्षेत्रों का क्षरण,जैव विविधता, पौधों और जानवरों के विलुप्त होने का डर, वैश्विक तापमान का बढ़ना  ,कार्बन सिंक संसाधन की हानि और वातावरण में CO2 के प्रतिशत में वृद्धि ,ओज़ोन परत रिक्तीकरण, माइक्रॉक्लाइमेट (किसी विशेष छोटे जगह की जलवायु) में परिवर्तन, मृदा अपरदन मिट्टी और उत्पादन की उत्पादकता का निम्नीकरण आदि दुष्प्रभाव है। ।

वन अग्नि के रोकथाम और प्रबंधन हेतु सरकार के प्रयास –

  • ज्ञातव्य हो कि भारत में वन संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाली समवर्ती सूची मे आता है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के जंगलों की आग पर राष्ट्रीय कार्य योजना ,2018 द्वारा भी इसका प्रबंधन होता है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय केंद्र द्वारा प्रायोजित वन अग्नि निवारण और प्रबंधन योजना के तहत जंगल की आग से बचाव और प्रबंधन के उपायों की देखरेख की जाती है।

सिमिलीपाल बायोस्फीयर रिजर्व

  • यह बायोस्फीयर रिजर्व ओडिशा के मयूरभंज जिले में अवस्थित है। सिमलीपल का नाम ‘सिमुल’ (Simul- सिल्क कॉटन) के पेड़ से लिया गया है।
  • सिमलिपाल बायोस्फीयर रिजर्व, एक नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व भी है।इस बायोस्फीयर रिजर्व में टाइगर और हाथी के अलावा विभिन्न प्रकार के पक्षी पाये जाते हैं।
  • सिमलिपाल बायोस्फीयर रिजर्व, वर्ष 2009 से ‘यूनेस्को वर्ल्ड नेटवर्क आफ बायोस्फीयर रिजर्व’ का हिस्सा है।भारत सरकार नेसिमलिपाल बायोस्फीयर रिजर्व को बायोस्फीयर रिजर्व का दर्जा 1994 में दिया था।
  • यहाँ एरेंगा और मनकीरदियाह नामक दो प्रमुख जनजातियाँ पाई जाती हैं।
  • यह सिमलिपाल -कुलडीहा-हदगढ़ हाथी रिज़र्व का हिस्सा है, इसे मयूरभंज एलीफेंट रिज़र्व के नाम से जाना जाता है। इसमें 3 संरक्षित क्षेत्र -सिमलिपाल टाइगर रिज़र्व, हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य और कुलडीहा वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
  • यह जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र 4,374 वर्ग किमी. में फैला है, इसमें 845 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र (बाघ अभयारण्य), 2,129 वर्ग किमी. का बफर क्षेत्र और 1,400 वर्ग किमी. का संक्रमण क्षेत्र है।
  • सिमलिपाल में 1,076 फूलों की प्रजातियाँ पायी जाती है। ऑर्किड की 96 प्रजातियाँ हैं। इसमें उष्णकटिबंधीय अर्द्ध-सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन, शुष्क पर्णपाती पहाड़ी वन और विशाल घास के मैदान हैं।

जैवमंडल रिज़र्व (बायोस्फीयररिजर्व)

  • जैवमंडल रिज़र्व संरक्षित क्षेत्रों की एक विशेष श्रेणी है। बायोस्फीयर रिजर्व, प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व भी करता है।
  • इसमें वन्यजीवों एवं प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा, रखरखाव, प्रबंधन या पुनर्स्थापन इन-सीटू संरक्षण विधि के तहत किया जाता है।
  • ये आमतौर पर 5000 वर्ग किमी. से अधिक बड़े संरक्षित क्षेत्र होते हैं। बायोस्फीयर रिज़र्व में 3 भाग होते हैं- कोर , बफर और ट्रांज़िशन ज़ोन (संक्रमण क्षेत्र )।
  • कोर क्षेत्र संवेदनशील होता है,यहाँ मानवीय गतिविधियों की अनुमति नहीं है।
  • बफर क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान की अनुमति दी जाती है। यह कोर क्षेत्र और संक्रमण क्षेत्र के बीच में स्थित होता है।
  • संक्रमण क्षेत्र बायोस्फीयर रिजर्व का सबसे बाहरी हिस्सा है।यह सामान्यतया एक सीमांकित क्षेत्र नहीं बल्कि सहयोगात्मक क्षेत्र है।इस क्षेत्र के अंतर्गत मानव बस्तियां, फसल भूमि, प्रबंधित जंगल, मनोरंजन का क्षेत्र और अन्य आर्थिक उपयोग वाले क्षेत्र शामिल हैं।
  • बायोस्फीयर रिजर्व का चुनाव राष्ट्रीय सरकार द्वारा किया जाता है जिसमें यूनेस्को के मानव और बायोस्फीयर रिजर्व कार्यक्रम के अंतर्गत तय न्यूनतम मापदंड पाये जाते हैं एवं वे बायोस्फीयर रिजर्व के वैश्विक नेटवर्क में शामिल होने के लिए निर्धारित शर्तों का पालन करते हैं।

स्रोत – द हिन्दू 

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