वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (SSR) दिशा–निर्देश जारी
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (Scientific Social Responsibility: SSR) दिशा-निर्देश जारी किए है ।
वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (SSR) के तहत ज्ञान आधारित कर्मियों का नैतिक दायित्व बनता है कि वे समाज के सभी हितधारकों की व्यापक श्रेणी में स्वेच्छा से योगदान दें।
ज्ञान आधारित कर्मी (नॉलेज वर्कर) ऐसा कोई भी कर्मी है, जो ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था (नॉलेज इकोनॉमी) में भाग लेता है।
ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में शामिल हैं–
- मानवीय, सामाजिक, प्राकृतिक, भौतिक, जैविक, चिकित्सा, गणितीय और कंप्यूटर/डेटा विज्ञान के क्षेत्र तथा इनसे संबंधित तकनीकी क्षेत्र।
- SSR का उद्देश्य समाज के कम संपन्न, हाशिए पर पड़े और शोषित वर्गों को सशक्त बनाना है। इसके लिए मौजूदा परिसंपत्तियों के अधिकतम उपयोग हेतु एक प्रभावी परिवेश का निर्माण भी करना है।
SSR के प्रमुख दिशा–निर्देश–
- प्रत्येक ज्ञान संस्थान अपने SSR लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी कार्यान्वयन योजना तैयार करेगा। यह योजना वह ज्ञान आधारित संस्थान के परामर्श से निर्मित करेगा।
- इस ज्ञान आधारित संस्थान को एंकर वैज्ञानिक संस्थान (ASI) कहा जाता है।
- प्रत्येक ज्ञान आधारित कर्मी से अपेक्षा की जाती है कि वह SSR के लिए एक वर्ष में कम से कम दस कार्य-दिवसों का योगदान करेगा। यह योगदान वह अपने दैनिक/नियमित कार्य के अलावा करेगा।
- व्यक्तिगत और संस्थागत SSR गतिविधियों को आवश्यक बजटीय सहायता द्वारा पर्याप्त रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा।
SSR के लाभ–
- यह विज्ञान के क्षेत्र और इसके लाभों का समुदायों तक विस्तार करेगा। यह ग्रामीण नवाचार में वैज्ञानिक भूमिका बढ़ाने में मदद करेगा। साथ ही सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs), स्टार्टअप्स और अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों को उनकी संपूर्ण उत्पादकता बढ़ाने में भी सहायता करेगा।
- यह प्रौद्योगिकी विजन 2035 की विशेष प्राथमिकताओं तथा जल, पारिस्थितिकी, स्वास्थ्य आदि जैसे सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को भी शामिल करेगा।
SSR में निम्नलिखित शामिल होंगेः
- विज्ञान–समाज संपर्कः मौजूदा और उभरती सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए यह संपर्क जरूरी है।
- विज्ञान–विज्ञान संपर्कः विचारों और संसाधनों को साझा करने के लिए यह संपर्क आवश्यक है।
- समाज–विज्ञान संपर्कः समुदायों की जरूरतों और समस्याओं की पहचान करने तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी समाधान विकसित करने के लिए उनके साथ सहयोग जरुरी है।
- लैब टू लैंड (प्रयोगशाला से खेत तक) के दृष्टिकोण को “खेत (अनुभव) से प्रयोगशाला (विशेषज्ञता), और फिर खेत (अनुप्रयोग) के नए युग के दृष्टिकोण” से बदल दिया जाएगा।
- सांस्कृतिक परिवर्तनः विज्ञान का अभ्यास करने वाले व्यक्तियों और संस्थानों के बीच सामाजिक जिम्मेदारी की भावना पैदा की जाएगी।
स्रोत –द हिन्दू