UNEP, द्वारा ‘सैंड एंड सस्टेनेबिलिटी: 10 स्ट्रेटेजिक रेकमेंडेशन्स टू एवर्ट ए क्राइसिस‘ रिपोर्ट जारी
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने “सैंड एंड सस्टेनेबिलिटी: 10 स्ट्रेटेजिक रेकमेंडेशन्स टू एवर्ट ए क्राइसिस” शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है।
जिसमें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने रेत के उपयोग पर पुनर्विचार करने और चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) को अपनाने की सलाह दी है।
इस रिपोर्ट के निम्नलिखित लक्ष्य हैं:
- रेत खनन और इसके उपयोग तथा दुष्प्रभावों के बारे में विश्व भर में जागरूकता बढ़ाना,
- नीति निर्माताओं से रेत खनन से जुड़ी नीतियों पर विचार करने और उन्हें अपनाने का आग्रह करना,
- सभी क्षेत्रों में साझा उद्देश्यों पर विचार करना, जो न्यायसंगत और जिम्मेदारीपूर्ण रेत खनन प्रणाली के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकें आदि।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
रेत निम्नलिखित में रणनीतिक भूमिका निभाती है:
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करने में, जैव विविधता को बनाए रखने में,आर्थिक विकास का समर्थन करने में तथा -समुदायों को आजीविका प्रदान करने में।
- और यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के सभी 17 लक्ष्यों से जुड़ी हुई है।
- वर्तमान में रेत खनन की दर प्राकृतिक रूप से रेत के निर्माण की दर से अधिक है। इस कारण से रिक्त स्थानों की पूर्ती नहीं हो रही है।
- नदी और तटीय या समुद्री पारिस्थितिक तंत्र से रेत का खनन किया जाता है। यहां इसका खनन पर्यावरण को कई तरह से नुकसान पहुंचाता है।
रेत खनन का प्रभाव–
- इससे अपरदन को बढ़ावा मिलता है। यह समुदायों और आजीविका, दोनों के लिए खतरा पैदा करता है।
- इससे भूजल प्रदूषित होता है।
- यह नदी तल में बदलाव लाता है। इससे नदियों के मार्ग परिवर्तित हो जाते हैं। यह तटबंधों को नुकसान पहुंचता है और फिर बाढ़ का कारण बनता है।
- यह जलीय जीवों और सूक्ष्म जीवों के पर्यावास को नष्ट करता है। यह भूजल के पुनर्भरण को भी प्रभावित करता है।
- इससे उपजाऊ भूमि और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचता है।
- भारत में, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत रेत को गौण खनिज के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- वर्ष 1957 के अधिनियम ने राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने के लिए नियम बनाने का अधिकार दिया है।
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें–
- पर्यावरण में रेत की विविध भूमिकाओं को देखते हुए इसे एक रणनीतिक संसाधन के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
- खनिज अधिकारों और सहमति के माध्यम से रेत संसाधनों का स्वामित्व और उस तक पहुंच के नियम बनाये जाने चाहिए।
- निर्णयों में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए रेत संसाधनों का मानचित्रण, निगरानी और रिपोर्टिंग की जानी चाहिए।
- पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली की जानी चाहिए और प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ावा देकर शेष नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए।
- रेत के उपयोग को कम करके संसाधन दक्षता और चक्रीय प्रणाली को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
स्रोत –द हिन्दू