समलैंगिक विवाह
- हाल ही में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने विरोध करते हुए कहा कि समलैंगिक शादी का विचार भारतीयों के लोकाचर और संस्कृति के पक्ष में नहीं हैं ।
- ज्ञात हो कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिये वर्ष 2020 में हिंदू विवाह अधिनियम ,1955 और विशेष विवाह अधिनियम ,1954 के तहत याचिकाएँ दायर की गई थीं।
- याचिका में कहा गया था विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत किसी भी दो व्यक्तियों के बीच विवाह की घोषणा की जाए एवं मौलिक अधिकारों का विस्तार करते हए इसमें समलैंगिक विवाह को भी मौलिक अधिकारों के दाएरे में लाया जाए।
सरकार का पक्ष
- केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय मेंयाचिका की सुनवाई के दौरान समलैंगिक विवाहका विरोध करते हुए कहा कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब बच्चा पैदा करने में सक्षम “जैविक पुरुष” और “जैविक महिला” के बीच विवाह हुआ हो।
- केंद्र सरकार ने कहा कि कानून केवल पुरुष और महिला के बीच विवाह को मान्यता देता है।
- केंद्र सरकार ने अपनी बात रखते हुए कहा कि समान लिंग का एक साथ रहना और एक ही व्यक्ति से यौन संबंध बनाना जैसी अवधारणा की, भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा (पति, पत्नी और बच्चे ) के साथ तुलना नहीं की जा सकती।
- सरकार ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के हटाने के बावजूद याचिकाकर्ता समान विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।
- केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि आर्टिकल 21 के तहत समलैंगिक विवाह किसी भी सूरत में मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है।
पृष्ठभूमि:
- ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधान के विश्लेषण के बाद केवल एक विशेष मानवीय व्यवहार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का आदेश दिया था।
- यह आदेश न तो समलैंगिक विवाह के उद्देश्य से और न ही इस आचरण को वैध बनाने के लिये दिया गया था।
अनुच्छेद 21
- मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार ,कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है और इसे समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार बनाने के लिये विस्तारित नहीं किया जा सकता है।
विवाह की पवित्रता:
- केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि भारत में शादी एक संस्था के रूप में पवित्रता से जुड़ी हुई है तथा देश के प्रमुख हिस्सों में इसे एक संस्कार माना जाता है।
- भारतीय परिवार की अवधारणा एक पति, एक पत्नी और बच्चे पर आधारित है, जिसकी तुलना समलैंगिक परिवार के साथ नहीं की जा सकती है।
स्रोत – द हिन्दू