तेल की बढती कीमतें
हाल ही में आपूर्ति संबंधी आशंका से तेल की कीमतें सात वर्ष के उच्चतमस्तर पर पहुंच गई है।
तेल की कीमतें एक डॉलर से अधिक हो गई हैं। यह कीमत सात वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इसके लिए उत्तरदायी कारण आपूर्ति बाधाओं से संबंधित आशंका है।
यह आशंका ईरान-गठबंधन समूह (यमन में हूती) और सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन के मध्य बढ़ती शत्रुता के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है।
अधिकतर वस्तुओं के समान, तेल की कीमत का प्रमुख चालक बाजार में उसकी आपूर्ति और मांग है।
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रभाव:
- देश के आयात बिल (भारत के आयात का लगभग 20%) में वृद्धि। इसके परिणामस्वरूप चालू खाता घाटे पर नकारात्मक प्रभाव।
- सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति जनित दबाव में वृद्धि।
- सरकार को पेट्रोलियम और डीजल पर करों में कटौती करने के लिए विवश होना पड़ता है। इससे राजस्व की हानि हो सकती है एवं राजकोषीय संतुलन प्रभावित हो सकता है।
- कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से रिफाइनिंग, स्नेहक, विमानन और टायर इत्यादि के लिए कच्चे माल की लागत प्रभावित होती है। इस प्रकार उनकी लाभप्रदता भी दबाव में आ जाती है।
तेल की कीमतों में वृद्धि के लिए अन्य आपूर्ति पक्ष कारक
- अमेरिका में शेल गैस उत्पादकों द्वारा कम ड्रिलिंग और मेक्सिको की खाड़ी में तूफान के कारण कच्चे तेल की आपूर्ति में बाधा।
- पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) द्वारा उसके सदस्य देशों के अनुकूल कीमतें तय करने के लिए तेल की आपूर्ति को कठोरता से विनियमित करना।
- OPEC द्वारा वैश्विक कीमतों और आपूर्ति को तय करने के लिए OPEC + के रूप में रूस के साथ कार्य करने के बाद रूस से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति अपेक्षा से कम है।
- मध्य-पूर्व में विद्यमान भू-राजनीतिक तनाव। इसमें अधिकांश तेल उत्पादक देश शामिल हैं।
तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए मांग पक्ष कारक
- चीन में कोयले को लेकर आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दों ने तेल की मांग को बढ़ा दिया है। इससे स्थिति और गंभीर हो गई है।
- शीत ऋतु के कारण सामान्य समय में भी कीमतों पर दबाव पड़ रहा है।
- विनाशकारी कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के फिर से खुलने के कारण ईंधन की मांग में तीव्र वृद्धि हुई है।
स्रोत –द हिन्दू