जलवायु और खाद्य मूल्य वृद्धि
चरम मौसमी घटनाएं अभूतपूर्व खाद्य मुद्रास्फीति को प्रेरित कर रही हैं ।
खाद्य मुद्रास्फीति के हालिया रुझानः
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के खाद्य मूल्य सूचकांक से स्पष्ट होता है कि खाद्य कीमतें पिछले एक दशक के अपने उच्चतम स्तर पर हैं।
- दिसंबर 2021, भारत के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में दो अंकों की प्रतिशत वृद्धि दर्शाने वाला लगातार नौवां महीना था। इन प्रवृत्तियों के लिए विश्लेषकों ने चरम मौसमी घटनाओं को जिम्मेदार ठहराया है।
- पिछले छह दशकों में विश्व स्तर पर खाद्य पदार्थों की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि की तीन प्रमुख घटनाएं हुई हैं। ये हैं: 1970 का दशक, वर्ष 2007-08 और वर्ष 2010 से लेकर वर्ष 2014 तक।
- खाद्य-कीमतों में वृद्धि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, व्यापार नीति में हस्तक्षेप आदि जैसे कारकों से भी प्रेरित थी।
जलवायु परिवर्तन खाद्य उत्पादन को कैसे प्रभावित करता है:
- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप गेहूं, मक्का और सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार में कमी आ रही है।
- बढ़ती गर्मी और वर्षा तेजी से भूमि का निम्नीकरण कर रही हैं। इससे मिट्टी की उत्पादकता लगातार कम हो रही है, जो फसल की पैदावार को प्रभावित करती है।
- बढ़ता तापमान लवणीय जल की घुसपैठ का कारण बन रहा है। इसने फसल भूमियों में स्थायी बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी है।
भारत द्वारा किए गए उपाय:
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन आरंभ किया गया है।
- नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर परियोजना शुरू की गई है।
सुझाव
- अधिक लचीली/सहनशील फसलों को विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास हेतु पर्याप्त वित्त पोषण होना चाहिए।
- निम्नीकृत क्षेत्रों में पारिस्थितिकी बहाली और प्राकृतिक संसाधनों का पुनर्स्थापन करना चाहिए।
स्रोत – द हिन्दू