विचाराधीन कैदियों को मताधिकार का अधिकार
हाल ही में उच्चतम न्यायालय विचाराधीन कैदियों को मताधिकार से वंचित करने वाले कानून की जांच करेगा ।
न्यायालय का यह निर्णय लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 62(5) को चुनौती देने वाली एक याचिका पर आया है।
यह धारा कैदियों को उनके मताधिकार से वंचित करती है। हालांकि, यह प्रतिबंध निवारक निरोध में रखे गए किसी व्यक्ति पर लागू नहीं होता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश भर की अलग-अलग जेलों में लगभग 5.5 लाख कैदी हैं।
कैदियों को मताधिकार देने के पक्ष में तर्क-
- RPA की धारा 62(5), अपनी व्यापकता के कारण भेदभावपूर्ण है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह धारा जेलों में बंद कैदियों सहित पुलिस कस्टडी में रहे लोगों को भी मताधिकार से वंचित करती है।
- एक ओर जहां सिद्धदोष व्यक्ति को जमानत होने पर मतदान करने की अनुमति दी जाती है, वहीं जेल में बंद विचाराधीन कैदियों को इसकी अनुमति नहीं है। जो कि अनुचित है।
कैदियों को मताधिकार नहीं देने के पक्ष में तर्क-
- अनुकूल चंद्र प्रधान बनाम भारत संघ (1997) मामले में, न्यायालय ने धारा 62 (5) की संवैधानिक वैधता को निम्नलिखित कारणों से बरकरार रखा था:
- मतदान का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार प्रदान नहीं किया गया है ।
- मताधिकार को विधायिका सीमित कर सकती है।
- इससे राजनीति के अपराधीकरण से बचने और चुनावी पारदर्शिता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
- संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा, क्योंकि इसकी अनुमति देने के लिए सुरक्षा की बेहतर व्यवस्था करनी होगी ।
स्रोत – द हिन्दू