12 मार्च को ‘दांडी यात्रा’ के स्मरण में कार्यक्रम
ज्ञातव्य हो कि 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुई ऐतिहासिक दांडी यात्रा अप्रैल 1930 में पूरी हुई थी।
यह यात्रा, देश में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व जारी ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन का एक भाग थी। इस यात्रा को ‘साल्ट मार्च’ भी कहा जाता है।
‘दांडी मार्च’ के बारे में:
- 12 मार्च, 1930 को, महात्मा गांधी ने अपने 78 अन्य साथियों के साथ, अंग्रेज़ों द्वारा नमक पर लगाए गए कर के विरोध में, गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती आश्रम से राज्य के समुद्र तटीय क्षेत्र में स्थित दांडी नामक गाँव तक ऐतिहासिक दांडी मार्च की शुरुआत की थी।
- 21 दिन की पदयात्रा के बाद ये सत्याग्रही 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे और नमक-कानून का उल्लंघन किया।
- दांडी में नमक बनाने के बाद, गांधी जी 40 किमी दक्षिण में ‘धरसाना साल्ट वर्क्स’ पहुंचे, कितु 5 मई को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
नमक सत्याग्रह से जुड़े तथ्य:
- दिसंबर 1929 के लाहौर अधिवेशन में, कांग्रेस पार्टी द्वारा ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव पारित किया गया था।
- 26 जनवरी, 1930 को ‘पूर्ण स्वराज’ की घोषणा की गयी थी और इसे हासिल करने के लिए ‘सविनय अवज्ञा’ का मार्ग अपनाने का निश्चय किया गया।
- महात्मा गांधी ने नमक-क़ानून तोड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसा का रास्ता चुना।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हेतु गांधीजी ने नमक सत्याग्रह को क्यों चुना?
- प्रत्येक भारतीय के घर में, नमक एक अपरिहार्य वस्तु होती है, फिर भी अंग्रेजों ने लोगों को घरेलू उपयोग के लिए भी नमक बनाने से मना किया और इसे उच्च मूल्य पर दुकानों से खरीदने के लिए विवश किया गया था।
- नमक पर राज्य के एकाधिकार से जनता में काफी रोष व्याप्त था, इसी को लक्ष्य बनाते हुए गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक स्तर पर जनता को आंदोलित करने का विचार किया।
- नमक के लिए ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की शुरुआत के प्रतीक के रूप में चुना गया क्योंकि नमक एक ऐसा पदार्थ माना जाता था जिस पर प्रत्येक भारतीय का मूल अधिकार था।
साल्ट मार्च या नमक सत्याग्रह के परिणाम:
- इस सत्याग्रह में महिलाओं, दबे-कुचले वर्ग सहित बहुत सारी जनता एक साथ संगठित हुई।
- इस आंदोलन ने उपनिवेशवाद के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ने में अहिंसा की शक्ति का प्रदर्शन किया।
- 1931 में, महात्मा गांधी को रिहा कर दिया गया, और सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त करने के उद्देश्य से लॉर्ड इरविन से गांधी जी मिले।
- इस मुलाकात के परिणामस्वरूप, ‘गांधी-इरविन समझौते’ पर हस्ताक्षर किए गए, और सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त हो गया और भारतीयों को घरेलू उपयोग के लिए नमक बनाने की अनुमति दी गई।
स्रोत – द हिंदू