क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रयास
हाल ही में शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं ।
- मध्य प्रदेश में MBBS की पुस्तक का हिंदी संस्करण प्रकाशित किया गया है।
- इसी के साथ, मध्य प्रदेश हिंदी भाषा में मेडिकल शिक्षा प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
- इससे पहले, दस राज्यों ने इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के लिए क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार किया था।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने पर बल देती है।
क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए की गई अन्य पहले
- अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद डिप्लोमा और अंडर ग्रेजुएट स्तर की 22 पुस्तकों का 9 अनुसूचित भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर रहा है।
- वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तकों के क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन के लिए अनुदान देता है।
- ‘बहुभाषक’ एक सॉफ्टवेयर टूल है। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि की मदद से व्याख्यानों का विभिन्न भाषाओं में रियल-टाइम अनुवाद करता है।
- इसे IIT बॉम्बे ने विकसित किया है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन के तहत इसका वित्तपोषण किया है।
क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा के लाभ
- विद्यालयों में नामांकन में सुधार होता है। इसके अलावा, लर्निंग में सुधार से लर्निंग के बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं।
- क्षेत्रीय भाषाओं में प्रवीणता बढ़ाकर सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत किया जा सकता है। इससे प्रतिभा पलायन में भी कमी लाई जा सकती है।
- इससे किसी व्यक्ति की योग्यता और क्षमता को आंकने में भाषा के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया जा सकता है।
- इस तरह भाषा को केवल अभिव्यक्ति का माध्यम समझा जाएगा।
क्षेत्रीय भाषाओं के प्रसार में बाधाएं
- भारतीय समाज बहुभाषायी प्रकृति का है। दूसरी ओर इनके प्रचार के लिए आवश्यक संसाधनों में वृद्धि करनी पड़ेगी। साथ ही, भाषा थोपे जाने का डर भी बना रहता है।
- क्षेत्रीय भाषाओं में व्यावसायिक पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी बड़ी समस्या है।
- प्लेसमेंट संबंधी चिंताएं भी हैं, क्योंकि क्षेत्रीय भाषाएं रोजगार के अवसरों को सीमित करती हैं।
स्रोत – द हिन्दू