Question – जर्मनी तथा इटली के एकीकरण की प्रक्रिया में क्रमशः बिस्मार्क एवं काबूर की भूमिका का वर्णन कीजिए। – 29 March 2022
Answer – वियना कांग्रेस (1815) ने यूरोप को ऐसी रूपरेखा प्रदान किया, जिसके फलस्वरूप राज्यों का विभाजन सुनिश्चित हुआ। उदहारण के लिए, प्रशा को पश्चिम में छोटे जर्मन राज्य प्राप्त हुए, ऑस्ट्रिया को वेनिस और अधिकांश उत्तरी इटली का क्षेत्र प्राप्त हुआ, इत्यादि। परिणामस्वरूप इस पृष्ठभूमि में, कैमिलो कावूर और ओट्टो वॉन बिस्मार्क जैसे नेताओं ने क्रमशः इटली और जर्मनी का एकीकरण करने के लिए आवश्यक रणनीतियां बनाना प्रारम्भ किया।
जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका:
वियना कांग्रेस ने ऑस्ट्रिया साम्राज्य के नेतृत्व में जर्मन राज्यों को जर्मन परिसंघ के अंतर्गत पुनर्स्थापित किया। प्रशा के प्रधानमंत्री (1862) और तत्कालीन जर्मन परिसंघ के चांसलर बिस्मार्क ने ‘रक्त और लौह की नीति को को लागू किया, जिसके अंतर्गत उसने प्रशा के नेतृत्व में जर्मन राज्यों का एकीकरण करने के लिए तीन व्यापक लक्ष्य निर्धारित किए:
- जर्मनी से ऑस्ट्रिया के प्रभाव को समाप्त करना,
- छोटे राज्यों की आर्थिक स्वतंत्रता को कम करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाना,
- संभावित फ्रांसीसी आक्रामकता के विरुद्ध जर्मनी को शक्तिशाली बनाना।
उसने इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कार्य किए:
- उसने फ्रेडरिक बॉन मोट्ज के साथ मिलकर एक एकीकृत जर्मन सीमा शुल्क संघ (जोलवेरीन) की स्थापना की, जिसने जर्मन राज्यों के बीच प्रशुल्क को समास किया और एक साझा बाजार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। इसके अंतर्गत ऑस्ट्रिया को शामिल नहीं किया गया था।
- उसने श्लेसविग और होल्स्टीन सहित जर्मन परिसंघ के अधिकांश क्षेत्रों पर अधिकार करने के लिए 1884 में ऑस्ट्रिया के साथ गठबंधन करके डेनमार्क के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।
- उसने ऑस्ट्रिया-प्रशा युद्ध (1866) में इटली के साथ गठबंधन किया और ऑस्ट्रिया को पराजित कर अंततः उसे जर्मन परिसंघ से बाहर निकाल दिया। इसके बाद यह परिसंघ स्वयं ही समाप्त हो गया।
- बिस्मार्क ने 1867 में उत्तर जर्मन परिसंघ का गठन किया और 22 जर्मन राज्यों को संगठित किया। परिसंघ के संविधान ने प्रशा के राजा को जर्मन राज्य का वंशानुगत प्रमुख बना दिया। हालांकि, बवेरिया जैसे दक्षिणी जर्मन राज्य स्वतंत्र बने रहे और उन्होंने ऑस्ट्रिया समर्थक नीति को अपनाए रखा।
- उसने प्रशा के राजा विल्हेम प्रथम द्वारा उसे भेजे गए एक तार, जिसमें राजा और एक फ्रांसीसी राजनयिक के बीच हुई बैठक का वर्णन था, को इस प्रकार हेरफेर करके प्रकाशित किया। जिससे लगता था कि राजा और राजनयिक दोनों ने एक-दूसरे को अपमानित किया हो। इस मनगढंत ‘ईएमएस टेलीग्राम’ (Ems telegram) वाली घटना ने फ्रांसीसी साम्राज्य को प्रशा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने के लिए उकसाया, जिससे फलस्वरूप फ्रांस-प्रशा का युद्ध (1870) हुआ।
- फ्रांस-प्रशा युद्ध में फ्रांस की हार ने बिस्मार्क द्वारा शेष जर्मन राज्यों (ऑस्ट्रिया को छोड़कर) को प्रशा में समाहित किया जाना तय कर दिया, परिणामतः जर्मनी के अंतिम एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसके अतिरिक्त, फ्रैंकफर्ट की संधि (1871) ने जर्मनी को अलसास के अधिकांश भाग और लरिन के कुछ भाग प्रदान किए।
इटली के एकीकरण में कावूर की भूमिका:
- इटली के एकीकरण की प्रक्रिया 1848 की क्रांति के साथ आरंभ हुई थी, जिसमें वियना कांग्रेस (1815) के परिणामों का विरोध किया गया था। पीडमॉन्ट और सामनिया राज्य के प्रधानमंत्री काबूर ने इटली के एकीकरण करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके योगदान में सम्मिलित है:
- कावूर ने भविष्य में सहयोग प्राप्त करने और इतालवी राज्यों को विदेशी प्रभाव से मुक्ति दिलाने के लिए क्रीमिया युद्ध (1853-56) में फ्रांस और ब्रिटेन का पक्ष लिया। उसने इटली का एकीकरण करने के कारणों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने के लिए पेरिस शांति सम्मेलन के परिणाम का भी उपयोग किया। वह भविष्य में सहयोग प्राप्त करने के लिए क्रीमिया युद्ध में शामिल हुआ था न कि फ़्रांस के सहयोग के लिए, जैसा कि वह दावा करता था।
- उसने ऑस्ट्रिया के नियंत्रण से इतालवी क्षेत्रों को मुक्त कराने और उसके बाद इतालवी एकीकरण की राजनीतिक संरचना तैयार करने के लिए नेपोलियन-III के साथ एक गुप्त मौखिक समझौता अर्थात प्लॉम्बियर्स समझौता (1858) किया। अंततः पीडमॉन्ट-सार्जीनिया द्वारा ऑस्ट्रिया-पीडमॉन्ट सीमांत पर तत्पर सैन्य गतिविधियों की शृंखला के बाद, ऑस्ट्रिया ने अल्टीमेटम जारी करते हुए पीडमॉन्ट की सेना की लामबंदी को पूरी तरह से समाप्त करने की आवश्यकता जहिर की। इसका अनुपालन करने में असफल होने के कारण द्वितीय इतालवी स्वतंत्रता युद्ध (1859) छिड़ गया, जिसे फ्रांस-ऑस्ट्रिया के युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि फ्रांस भी इसमें सम्मिलित हो गया था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, ऑस्ट्रिया ने फ्रांस को लोम्बार्डी सौंप दिया, जिसके बदले में उसे सार्जीनिया मिला।
- ऑस्ट्रिया के विरुद्ध काबूर की सफलता से प्रेरित होकर उत्तरी इतालवी राज्यों ने 1859 और 1860 में चुनाव कराए और पीडमॉन्ट-सार्जीनिया राज्य में सम्मिलित होने के पक्ष में मतदान किया।
- गैरीबाल्डी का दक्षिणी इतालवी राज्यों में काफी प्रभुत्व था, इसलिए कावूर ने अपने लाभ के लिए गैरीबाल्डी के प्रभुत्व का उपयोग किया और इटली के शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए दक्षिणी राज्यों में जनमत संग्रह करवाया। उसने यह विलय इस प्रकार दिखाया जिससे ऐसा प्रतीत हो कि पीडमॉन्ट साम्राज्य अपना क्षेत्रीय विस्तार नहीं कर रहा है बल्कि यह स्वयं लोगों के द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर की गयी क्रांति है।
- ऑस्ट्रिया-प्रशा युद्ध (1866) के दौरान उसने प्रशा के साथ गठबंधन भी किया और उसी समय ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध अर्थात् तृतीय इतालवी स्वतंत्रता युद्ध भी लड़ा। ऑस्ट्रिया की दोनों युद्धों में पराजय हुई और उसने इटली को वेनेशिया सौंप दिया।
- फ्रांस-प्रशा युद्ध (1870) के बाद पोप का राज्य इटली में सम्मिलित कर लिया गया। इस प्रकार 1871 तक इटली अंततः एकीकृत हो गया और रोम को इसकी राजधानी बनाया गया।
बिस्मार्क और कावूर ने राष्ट्रीय हित की खोज में सत्ता का यथार्थवादी विश्लेषण किया। उन्होंने अपने क्षेत्रों का विस्तार करने और क्रमशः जर्मनी और इटली के एकीकरण की प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए क्रीमियन युद्ध, ऑस्ट्रिया-प्रशा युद्ध और फ्रांसप्रशा युद्ध जैसे युद्धों का सहारा लिया।