UNGA ने फिलिस्तीन पर इजरायल के अवैध कब्जे के संबंध में ICJ से मांगी राय
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने फिलिस्तीन पर इजरायल के अवैध कब्जे के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) से राय मांगी है।
विदित हो कि UNGA द्वारा जिस संकल्प पर ICJ से इजरायली कार्यवाहियों के बारे भी राय मांगी गई है भारत ने उस संकल्प के मतदान में भाग नहीं लिया था।
ICJ से निम्नलिखित उद्देश्यों वाली इजरायली कार्यवाहियों के बारे भी राय मांगी गई है:
पवित्र शहर यरुशलम की जनसांख्यिकी संरचना, चरित्र और स्थिति में बदलाव करना ।
इससे संबंधित भेदभावपूर्ण कानूनों और उपायों को लागू करना ।
इजरायल – फिलिस्तीन संघर्ष के बारे में
यहूदी 20वीं शताब्दी की शुरुआत से ही अपने पूर्वजों की संपत्ति के रूप में फिलिस्तीनी भूमि पर अपना दावा करते हैं, जबकि यहां अरब सदियों से बहुसंख्यक हैं।
वर्ष 1920–40 के दौरान यूरोप (विशेषकर जर्मनी) में यहूदियों का बहुत अधिक उत्पीड़न होने लगा था। इसके कारण फिलिस्तीन में यहूदियों का प्रवासन बढ़ गया था।
वर्ष 1947 में, संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को एक अलग यहूदी और अरब राज्य में विभाजित करने का संकल्प पारित किया गया था।
इस संकल्प को अरब देशों ने खारिज कर दिया था। हालांकि, वर्ष 1948 में इजरायल राज्य की घोषणा कर दी गई। इसके परिणामस्वरूप पहला अरब-इजरायल युद्ध हुआ ।
युद्ध विराम के तहत, जॉर्डन ने वेस्ट बैंक पर और मिस्र ने गाजा पर अधिकार कर लिया । यरुशलम को इजरायल और जॉर्डन के बीच विभाजित कर दिया गया ।
वर्ष 1967 में अरब और इजरायल के बीच छह दिवसीय युद्ध शुरू हुआ।
युद्ध के अंत में, इजरायल ने मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप और गाजा पट्टी पर जॉर्डन के वेस्ट बैंक और पूर्वी यरूशलम पर तथा सीरिया के गोलन हाइट्स पर राज्यक्षेत्रीय नियंत्रण प्राप्त कर लिया था।
इजरायल का अभी भी वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर अधिकार है। यहां वह यहूदी बस्तियां स्थापित कर रहा है।
वर्ष 2004 में, ICJ ने निर्णय दिया था कि अधिकृत वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में इजरायल द्वारा निर्मित दीवार अवैध है।
ICJ के बारे में
यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है । ICJ में 15 न्यायाधीश होते हैं।
इनकी निम्नलिखित दोहरी भूमिका होती है:
देशों द्वारा इसके समक्ष दायर उनके आपसी कानूनी विवादों का अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार निपटारा करना और संयुक्त राष्ट्र के अंगों और विशेष एजेंसियों द्वारा कानूनी मामलों पर विधिवत एवं अधिकृत रूप से मांगे जाने पर सलाहकारी राय देना ।
देशों के बीच विवादों में ICJ द्वारा दिए गए निर्णय संबंधित पक्षों पर बाध्यकारी होते हैं ।
स्रोत – द हिन्दू