रिडले कछुए का “मास नेस्टिग”
हाल ही में ओलिव रिडले कछुए “मास नेस्टिग” के लिए ओडिशा तट पर पहुँचने लगे हैं ।
- वर्ष 2022 का अरिबाडा (Arribada), गहिरमाथा तट पर दर्ज की गई अब तक की सबसे देरी से घटित होने वाली मास नेस्टिग परिघटना है। अरिबाडा (Arribada) का आशय समुद्री कछुओं की मास नेस्टिग (यानी बड़े स्तर पर अंडे देने) से है।
- ओडिशा का गहिरमाथा तट, ओलिव रिडले कछुओं का दुनिया में सबसे बड़ा ब्रीडिंग स्थल है। इसके बाद ऋषिकुल्या का स्थान आता है।
- ओलिव रिडले कछुए सामान्यतः रात के समय बालू वाले समुद्र तट पर गड्ढा खोदकर उसमें 40-50 अंडे देते हैं। अंडे देने के बाद कछुए उसे पुनः बालू से ढक देते हैं। इसके बाद सूर्योदय से पहले कछुए समुद्र में लौट जाते हैं। इन अण्डों से 40-60 दिनों के बाद बच्चे निकलने लगते हैं।
ओलिव रिडले के बारे में:
- इनका यह नाम इनके ओलिव ग्रीन (हरे जैतून) रंग वाले कवच (shell) के कारण पड़ा है। इनके कवच का आकार दिल के जैसा होता है।
- ये मुख्य रूप से प्रशांत, हिंद और अटलांटिक महासागरों के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
मुख्य खतरेः
- मछली पकड़ने वाले बड़े-बड़े जालों में दुर्घटनावश फंसने से इनकी मृत्यु हो जाती है;
- मांस, कवच और चमड़े के लिए इनका बड़े पैमाने पर अवैध शिकार किया जाता है;
- ये समुद्री सतह के बढ़ते तापमान से नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं; आदि।
ये कछुए IUCN की लाल सूची में वल्नरेबल (सुभेद्य) के रूप में सूचीबद्ध हैं।
संरक्षण की स्थितिः
ये भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची में सूचीबद्ध हैं। साथ ही, ये वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के एपेंडिक्स में भी सूचीबद्ध हैं।
इसके संरक्षण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए मुख्य कदमः
- वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau) द्वारा ऑपरेशन सेव कूर्म आरंभ किया गया है।
- ओडिशा सरकार ने बड़े-बड़े जालों के लिए टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस (TEDs) का उपयोग अनिवार्य कर दिया है।
- ऑपरेशन ओलिवा अभ्यास शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य ब्रीडिंग करने वाले ओलिव रिडले कछुओं के लिए समुद्र में सुरक्षित पड़ाव सुनिश्चित करना है।
स्रोत – द हिंदू