हिंद महासागर में समुद्री ऊष्मीय तरंगे मध्य भारत में मानसूनी वर्षा को कम कर रही हैं
हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार हिंद महासागर में समुद्री ऊष्मीय तरंगे (Marine heat waves: MHW) मध्य भारत में मानसूनी वर्षा को कम कर रही हैं ।
यह अध्ययन भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र (CCCR) ने किया है।
मुख्य निष्कर्ष
वर्ष 1982 से वर्ष 2018 के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री ऊष्मीय तरंगों (प्रति दशक 1.5 घटनाएँ) में सर्वाधिक वृद्धि हुई है। इसके बाद बंगाल की खाड़ी (प्रति दशक 0.5 घटनाएँ) के उत्तरी हिस्से में यह बढ़ोतरी हुई है।
हिंद महासागर में समुद्री ऊष्मीय तरंगों में वृद्धि के परिणाम:
- मध्य भारत में मानसूनी वर्षा में गिरावट हो रही है।
- दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में मानसूनी वर्षा में वृद्धि हो रही है।
- ये परिवर्तन ऊष्मीय तरंगों के कारण मानसूनी पवनों के उतार-चढ़ाव की प्रतिक्रिया में उत्पन्न हुए हैं।
- समुद्री ऊष्मीय तरंगें तब उत्पन्न होती हैं, जब समुद्री जल का तापमान लगातार 5 दिनों तक मौसम के अनुसार परिवर्तित सीमा (आमतौर पर 90वीं प्रतिशतता) से अधिक हो जाता है।
MHW के कारण
- हिंद महासागर में सतही जल के गर्म होने और प्रशांत महासागर में अल नीनो की घटनाओं की प्रतिक्रिया में समुद्री ऊष्मीय तरंगें उत्पन्न होती हैं।
- स्थानीय रूप से, सौर विकिरण की चरम मात्रा और कमजोर पवन प्रवाह के कारण वाष्पीकरण से प्रेरित शीतलन में गिरावट से MHW का निर्माण होता है।
- पश्चिमी हिंद महासागर में कमजोर पवनें, भूमध्यरेखीय क्षेत्रों से उत्तर की ओर महासागरीय धाराओं द्वारा लाई गई ऊष्मा को भी कम करती हैं। इससे MHW तीव्र हो जाती हैं।
स्रोत –द हिन्दू