जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा जीनोम–संपादित पौधों के लिए जैव सुरक्षा दिशा–निर्देशों में संशोधन
हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने जीनोम-संपादित पौधों के लिए जैव सुरक्षा दिशा-निर्देशों में संशोधन किए गए हैं।
इन दिशा–निर्देशों के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
- आनुवंशिक संशोधनों के लंबे समय तक उपयोग के लिए एक रोडमैप स्थापित करना, तथा जीनोम संपादित (Genome-Edited) पौधों की अलग-अलग श्रेणियों के लिए विनियामक आवश्यकता को परिभाषित और निर्धारित करना।
- जीनोम संपादन/जीन एडिटिंग प्रौद्योगिकियों का एक समूह है। यह किसी जीव के DNA/RNA में परिवर्तन को संभव बनाता है।
कुछ प्रमुख जीनोम एडिटिंग तकनीक निम्नलिखित हैं:
- जिंक फिंगर न्यूक्लीज (ZENs),
- ट्रांसक्रिप्शन एक्टिवेटर-लाइक एफेक्टर न्यूक्लीज (TALENS),
- क्लस्टर्ड रेगुलर इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट (CRISPR) आदि।
इस तकनीक का पौधों में निम्नलिखित सामान्य उपयोग है:
- फसल में सुधार,
- फसल पोषण में वृद्धि,
- फसल का संरक्षण,
- जैव ईंधन के रूप में आदि।
ये दिशा-निर्देश साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज (SDN)-1 और SDN-2 की श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले जीनोम संपादित पौधों को खतरनाक सूक्ष्मजीवों/ आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों या कोशिकाओं के विनिर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात तथा भंडारण नियम, 1989 से छूट प्रदान करते हैं। ये नियम पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986) के तहत बनाए गए हैं।
यह छूट पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पहले दी गई रियायत पर आधारित है। यह रियायत आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) के माध्यम से GM फसलों की स्वीकृति के लिए एक लंबी प्रक्रिया से बचने के लिए दी गयी थी।
नए दिशा–निर्देशों का महत्व–
- ये भारत की विनियामक रुपरेखा को विश्व के अन्य बड़े खाद्य उत्पादक देशों के समकक्ष लाते हैं।
- किसानों की आय बढ़ाने में मदद करने के लिए उत्पाद विकास और व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित करते हैं।
- तीव्र ब्रीडिंग प्रक्रिया के माध्यम से फसल के आनुवंशिक विकास को गति प्रदान करते हैं।
स्रोत –द हिन्दू