सूचना आयोग (IC) ने वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट नहीं की प्रकाशित

सूचना आयोगों (IC) ने वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट नहीं की प्रकाशित

हाल ही में जारी एक अध्ययन के अनुसार 29 में से 21 (72%) सूचना आयोग (Information Commissions: ICs) ने वर्ष 2019-20 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है।

केंद्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information (RTI) Act),2005 के तहत गठित अंतिम अपीलीय प्राधिकरण (Final Appellate Authority) हैं। ये किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त करने से वंचित किए गए नागरिकों की शिकायत निवारण के लिए अधिदेशित हैं।

इन्हें त्रुटि करने वाले लोक सूचना अधिकारियों (Public Information Officers: PIOs) पर जुर्माना लगाने, उनके विरुद्ध जांच प्रारंभ करने (सिविल न्यायालय की शक्ति) आदि जैसी व्यापक शक्तियां प्राप्त हैं।

ICs को अनिवार्यतः प्रत्येक वर्ष कानून के कार्यान्वयन पर एक रिपोर्ट तैयार करनी होती है। तत्पश्चात इस रिपोर्ट को संसद या राज्य विधायिका के पटल पर प्रस्तुत किया जाता है।

सूचना का अधिकार (RTI)

  • यह नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करके शासन को नागरिक केंद्रित बनाता है।
  • RTI संशोधन अधिनियम, 2019 ने केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों (केंद्रीय/राज्य) के कार्यकाल, वेतन और भत्तों को अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान किया है। इससे ICs की स्वायत्तता के क्षरण की आशंका में वृद्धि हुई है।
  • ध्यातव्य है कि RTI अधिनियम, 2005 ने एक सूचना आयुक्त का 65 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु के साथ पांच वर्ष का निश्चित कार्यकाल सुनिश्चित किया था। परन्तु, संशोधन अधिनियम के अनुसार कार्यकाल को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।
  • 2005 के अधिनियम के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों (केंद्रीय स्तर पर) का वेतन क्रमशः मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के वेतन के बराबर होगा। इसी प्रकार राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमशः चुनाव आयुक्तों और राज्य सरकार के मुख्य सचिव के बराबर होगा। परन्तु संशोधन अधिनियम के अनुसार केंद्रीय और राज्य स्तर के मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्तों और सेवा की अन्य शर्तों एवं नियमों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

RTI अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराएँ

(धारा 4): रिकॉर्ड रखने और अग्रसक्रिय प्रकटीकरण हेतु लोक प्राधिकारी के दायित्व।

(धारा 7): आवेदन प्राप्त होने पर 30 दिनों के भीतर (APIO को भेजे जाने पर 35 दिन), मानवाधिकारों के उल्लंघन पर 45 दिन और व्यक्ति के जीवन एवं स्वतंत्रता से जुड़े होने पर 48 घंटे के भीतर सूचना उपलब्ध करवाना अनिवार्य है।

(धारा 5):  सहायक PIO की नियुक्ति के विकल्प के साथ केंद्रीय/राज्य लोक सूचना अधिकारी (CPIO/SPIO) की नियुक्ति।

(धारा 8): सूचना प्रकटीकरण के अपवाद, जैसे राष्ट्र की संप्रभुता एवं अखंडता को प्रभावित करना, विदेशी संबंधों को प्रभावित करना आदि।

स्रोत -द हिन्दू

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