पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ईंट-भट्टों के लिए नई अधिसूचना
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC) ने ईंट-भट्टों पर नई अधिसूचना जारी की है ।
इस अधिसूचना का शीर्षक “पर्यावरण (संरक्षण) संशोधन नियम, 2022 है। यह अधिसूचना पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत जारी की गयी है। इसमें ईंट-भट्टों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के उपायों का उल्लेख किया गया है।
अधिसूचना की मुख्य विशेषताएं:
- पार्टिकुलेट मैटर (PM) उत्सर्जन के लिए 250 मिलीग्राम प्रति सामान्य घन मीटर का मानक तय किया गया है।
- मौजूदा ईंट भट्टों को या तो जिग-जैग तकनीक या वर्टिकल शाफ्ट में परिवर्तित किया जाएगा। एक अन्य विकल्प के तहत ईंट बनाने में ईंधन के रूप में PNG का उपयोग किया जाएगा। गैर-प्राप्ति शहरों (नॉन अटेनमेंट सिटी) के 10 किमी के दायरे में स्थित भट्टों के मामले में यह कार्य एक वर्ष के भीतर किया जाएगा, जबकि अन्य क्षेत्रों में यह दो वर्षों के भीतर किया जायेगा।
- गैर-प्राप्ति शहर ऐसे शहर हैं, जो पांच वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality standards: NAAOS) को पूरा नहीं कर पाए हैं।
- वसभी ईंट भट्ठों में PNG, कोयला, जलाऊ लकड़ी और/या कृषि अपशिष्ट जैसे स्वीकृत ईंधन का उपयोग किया जाएगा। पेट कोक, टायर, प्लास्टिक व खतरनाक अपशिष्ट के उपयोग की अनुमति नहीं होगी।
- ईंट भट्ठों को धूल कण उत्सर्जन नियंत्रण दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।
- भारत भट्ठों में पकाई गई ईंटों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- ईंट भट्टों से वार्षिक आधार पर लगभग 66-84 मिलियन टन CO, और 100,000 टन ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन होता है।
- ये स्थानीय पार्टिकुलेट मैटर (PM) और सल्फर 8 डाइऑक्साइड से होने वाले वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
जिगजैग तकनीकः जिगजैग भट्टों में, ईंटों को इस तरह व्यवस्थित किया जाता है, जिससे गर्म हवा आड़े तिरछे (जिगजैग) मार्ग से निकास कर सके। जिगजैग वायु पथ की लंबाई एक सीधी रेखा की लगभग तीन गुणी होती है। यह पथ ईंधन गैसों से ईंटों तक ऊष्मा स्थानांतरण में सुधार करता है। इससे संपूर्ण प्रक्रिया अधिक कुशलता से संपन्न हो जाती
लंबवत शाफ्ट युक्त ईंट भट्ठा प्रौद्योगिकी: यह पकाई गई ईंटों के उत्पादन के लिए एक ऊर्जा-कुशल और पर्यावरण अनुकूल दहन तकनीक है।
स्रोत –द हिन्दू