राष्ट्रीय आर्द्रभूमि दशकीय परिवर्तन एटलस जारी
हाल ही में राष्ट्रीय आर्द्रभूमि दशकीय परिवर्तन एटलस जारी किया गया है। इस एटलस का शीर्षक “राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची और आकलन (National Wetland Inventory and Assessment) -2008-07 तथा 2017-18” रखा गया है।
इसे इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre: SAC) ने तैयार किया है। इसमें पिछले एक दशक में देश भर की आर्द्रभूमियों में हुए परिवर्तनों को दर्शाया गया है।
मूल एटलस को SAC ने वर्ष 2011 में जारी किया था। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सभी राज्य सरकारों ने अपनी योजना प्रक्रियाओं में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया है।
मुख्य निष्कर्ष:
- राष्ट्रीय स्तर पर, देश की सभी आर्द्रभूमियों का कुल क्षेत्रफल 98 मिलियन हेक्टेयर अनुमानित है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.86 प्रतिशत है।
- आर्द्रभूमि के अलग-अलग प्रकारों में कुल आर्द्रभूमियों का एक तिहाई से अधिक हिस्सा नदियों (2 प्रतिशत) द्वारा कवर किया गया है। वहीं लगभग अन्य 43 प्रतिशत आर्द्रभूमि क्षेत्र संयुक्त रूप से जलाशयों (17.1 प्रतिशत) द्वारा कवर किया गया है।
- पिछले एक दशक में आर्द्रभूमि क्षेत्र में अधिकांश वृद्धि अंतर्देशीय मानव निर्मित (5 प्रतिशत) और तटीय कृत्रिम (17.0 प्रतिशत) श्रेणियों में दर्ज की गयी है।
- तटीय प्राकृतिक आर्द्रभूमियों में कमी आई है। ये अधिकांशतः तटीय मानव निर्मित श्रेणियों में रूपांतरित हो गई हैं।
- मैंग्रोव क्षेत्र और प्रवाल भित्तियों के क्षेत्र में भी वृद्धि दर्ज की गयी है।
आर्द्रभूमियों के बारे में:
- रामसर अभिसमय के अनुसार प्राकृतिक या कृत्रिम, स्थायी या अस्थायी दलदली पंकभूमि, पीटभूमि या जलीय क्षेत्र (जिसका जल ठहरा या बहता हुआ, ताजा, खारा या लवणीय है) को आर्द्रभूमि कहा जाता है।
- इसमें समुद्री जल के उन हिस्सों को भी शामिल किया गया है, जिनकी निम्न ज्वार के दौरान गहराई छह मीटर से अधिक नहीं है।
- भारत में आर्द्रभूमियों के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 लागू किए गए हैं।
स्रोत –द हिन्दू