NGT द्वारा दिल्ली लैंडफिल साइटों पर अपशिष्ट के कुपृबंधन हेतु जुर्माना
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने लैंडफिल साइटों पर अपशिष्ट के कुपृबंधन के लिए दिल्ली सरकार पर जुर्माना लगाया है।
दिल्ली में गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइटों पर लगभग 80% पुराने अपशिष्ट का अब तक उचित निपटान नहीं किया गया है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार केवल गैर- पुनर्नवीनीकरण योग्य, गैर-जैव निम्नीकरणीय और गैर- दहनशील अपशिष्ट को ही सेनेटरी लैंडफिल में जमा करने की अनुमति है।
CPCB के अनुसार, वर्ष 2020-21 में देश में उत्पन्न होने वाले ठोस अपशिष्ट की कुल मात्रा 1.6 लाख टन प्रतिदिन थी। इसमें से प्रतिदिन 1.5 लाख टन अपशिष्ट 95.4% की संग्रह दक्षता पर एकत्र किया जाता है।
भारत में ठोस अपशिष्ट के निपटान में चुनौतियां–
- MSW समस्या के समाधान के लिए धन की कमी।
- नियमों और विनियमों का खराब कार्यान्वयन।
- अनियोजित पृथक्करण सुविधा तथा स्त्रोत पर पृथक्करण न होना।
- प्रशिक्षित कार्यबल का अभाव।
ठोस अपशिष्ट के अनुचित उपचार के हानिकारक प्रभाव–
- लैंडफिल से मीथेन जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं। इससे आग लग सकती है।
- आसपास के क्षेत्रों में गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव जैसे जन्म दोष, जन्म के समय कम वजन आदि उत्पन्न होते हैं। भूमि और जल आपूर्ति में हानिकारक रसायनों का रिसाव होता है।
ठोस अपशिष्ट निपटान के उपचारात्मक तरीके –
- भस्मीकरण (Incineration): इसमें कार्बनिक पदार्थों का दहन किया जाता है। इससे तलीय राख, फ्लू गैस, कणिकीय पदार्थ, ऊष्मा आदि उत्पन्न होते हैं। इनका विद्युत उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- गैसीकरणः यह जैविक या जीवाश्म आधारित कार्बनयुक्त पदार्थों को उच्च तापमान (>700°C) पर कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। इसमें दहन प्रणाली का उपयोग नहीं किया जाता है। इसकी बजाये नियंत्रित मात्रा में ऑक्सीजन और/या भाप का इस्तेमाल किया जाता है।
- पायरोलिसिसः इसमें अपशिष्ट/सामग्री का उच्च तापमान और ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में दहन किया जाता है।
स्रोत – द हिन्दू