राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को स्वतः संज्ञान लेने की शक्ति यथावत
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal: NGT) की स्वतः संज्ञान लेने की शक्ति को यथावत रखा है।
शीर्ष न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया है कि NGT अपनी स्वप्रेरणा से कार्य नहीं कर सकता या न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता या अपने कायों के निर्वहन में स्वत संज्ञान से कार्य नहीं कर सकता ।
ध्यातव्य है कि पर्यावरण के संबंध में अनुच्छेद 21 को लागू करने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत NGT की स्थापना की गई है।
सर्वविदित है कि स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार संविधान केअनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
NGT की सार्वजनिक रूप से यह जिम्मेदारी है कि वह स्वच्छ पर्यावरण के मूल अधिकार की रक्षा के लिए यदि आवश्यक हो तो कार्रवाई आरंभ करे। इसके अतिरिक्त, प्रक्रियात्मक कानून इसके प्रकायों में बाधक नहीं होने चाहिए।
विधिवत प्रक्रिया व्यक्तियों के अधिकारों, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को स्थापित करती है। प्रक्रियात्मक कानून उन पद्धतियों, प्रथाओं और रीतियों को स्थापित करता है, जिनमें न्यायालयी कार्यवाही संपन्न होती है।
उदाहरण के लिए, NGT के मामले में प्रक्रियात्मक अभावके कारण स्वप्रेरण से कार्रवाई करने में असमर्थ हो जाना मूल अधिकारों (पर्यावरण का अधिकार) के साथ समझौता हो सकता है।
NGT द्वारा संबोधित की जाने वाली व्यापक सामाजिक चिंताओं है ने न्यायालय को उद्देश्यपूर्ण व्याख्या का विकल्प चुनने के लिए प्रेरित किया है।
वैधानिक व्याख्या के उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण में विधान या कानून के प्रयोजन पर विचार करना शामिल है (इस मामले में यह पर्यावरण का संरक्षण है )
स्रोत –द हिन्दू