राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2022 अधिसूचित

राष्ट्रीय भूस्थानिक नीति 2022 अधिसूचित

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति, 2022 (National Geospatial Policy) को अधिसूचित किया गया है।

  • इस नीति का उद्देश्य भू-स्थानिक क्षेत्रक को मजबूती प्रदान करना है। इससे देश के विकास, आर्थिक समृद्धि और भारत की समृद्ध होती जा रही सूचना आधारित अर्थव्यवस्था को समर्थन प्रदान किया जा सकेगा।
  • यह नीति 13 वर्षों के लिए दिशा-निर्देशों को रेखांकित करती है। ये दिशा-निर्देश देश के भू-स्थानिक डेटा उद्योग को बढ़ावा देंगे। साथ ही, नागरिक सेवाओं में सुधार आदि के लिए ऐसे डेटा के उपयोग पर एक राष्ट्रीय ढांचा विकसित करेंगे।

भूस्थानिक नीति, 2022 की मुख्य विशेषताएं

  • इस नीति के तहत केंद्र सरकार भू-स्थानिक डेटा संवर्धन और विकास समिति (GDPDC) का गठन करेगी। यह समिति इस क्षेत्रक के लिए शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करेगी।
  • GDPDC मौजूदा राष्ट्रीय स्थानिक डेटा समिति (NSDC) और पूर्व में गठित भू-स्थानिक डेटा संवर्धन और विकास समिति का स्थान लेगी।
  • राष्ट्रीय भू–स्थानिक डेटा रजिस्ट्री (NGDR) का परिचालन शुरू हो जाएगा। इससे राष्ट्रीय मौलिक और क्षेत्रक भू-स्थानिक डेटा प्राप्त करने में दक्षता आएगी ।
  • सार्वजनिक निधि का इस्तेमाल करके भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा तैयार किए गए स्थलाकृतिक डेटा और अन्य भू-स्थानिक डेटा को सार्वजनिक वस्तु माना जाएगा। साथ ही, इसे सभी को आसानी से उपलब्ध कराया जाएगा।
  • यह नीति 14 ग्लोबल फंडामेंटल जियोस्पेशियल डेटा थीम को मान्यता देती है । ये थीम किसी भी देश के एकीकृत भू–स्थानिक सूचना अवसंरचना के विकास तथा सतत विकास लक्ष्यों (SDG) की प्राप्ति के लिए आवश्यक मानी जाती हैं ।
  • GDPDC नेशनल डिजिटल ट्विन रणनीति तैयार करेगी। डिजिटल ट्विन भौतिक परिसंपत्ति, प्रक्रिया या सेवा की एक आभासी प्रतिकृति है, जो नई डिजिटल क्रांति के केंद्र में है ।

भूस्थानिक प्रौद्योगिकियां

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियां, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS), ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS), भू पर्यवेक्षण और स्कैनिंग जैसी तकनीकों का एक संयोजन है।
  • इनके माध्यम से भौगोलिक मानचित्रण तथा पृथ्वी एवं मानव समाजों का विश्लेषण किया जाता है।
  • इसका अर्थव्यवस्था के लगभग प्रत्येक क्षेत्रक में उपयोग होता है। इनमें कृषि, उद्योग, शहरी या ग्रामीण अवसंरचना विकास, भूमि प्रशासन, बैंकिंग व वित्त संबंधी आर्थिक गतिविधियां आदि शामिल हैं।
  • अब इसे व्यापक रूप से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसंरचना के रूप में स्वीकार किया जाता है ।

स्रोत – पी.आई.बी.

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