‘अनुसूचित और बहु-राज्यीय शहरी सहकारी बैंकों तथा ऋण समितियों’ का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित
हाल ही में सहकारिता मंत्रालय द्वारा ‘अनुसूचित और बहु-राज्यीय शहरी सहकारी बैंकों तथा ऋण समितियों’ का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया है ।
यह सम्मेलन सहकारिता मंत्रालय और ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन कोऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज लिमिटेड’ (NAFCUB) ने आयोजित किया है।
सम्मेलन में सहकारी बैंकों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया गया।
सहकारी बैंकों का महत्वः
- ये गरीबों की सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाते हैं,
- ये नेतृत्व विकास को प्रोत्साहित करते हैं,
- ये वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हैं आदि।
सहकारी बैंकों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियां–
- ऐसे बैंकों में सरकारी हस्तक्षेप अधिक है और इनका राजनीतिकरण भी होता है।
- ऐसे बैंकों में निष्पक्ष लेखा परीक्षा तंत्र का अभाव है।
- लागत की तुलना में लाभ अर्जित करने की प्रवृत्ति का अभाव है।
- इन्हें दोहरे विनियमन का सामना करना पड़ता है। ये राज्य के रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों के विनियमन के अधीन हैं।
सहकारी समितियों के संबंध में संवैधानिक प्रावधान–
- ‘सहकारी समितियां’ सातवीं अनुसूची के तहत ‘राज्य सूची’ का विषय है।
- 97वे संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में भाग IXB को जोड़ा गया था।
- भारत संघ बनाम राजेंद्र शाह और अन्य (2021) मामले में, न्यायालय ने संशोधन को आंशिक रूप से रद्द कर दिया था। न्यायालय के अनुसार संशोधन के कुछ प्रावधान राज्य सूची के विषयों के संबंध में राज्य विधानसभाओं की शक्तियों का अतिक्रमण करते हैं।
- अनुच्छेद-19(1)(c) संगम या संघ या सहकारी सोसाइटी बनाने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद-43B में कहा गया है कि राज्य, सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त । कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा।
- इससे पहले, एक नया सहकारिता मंत्रालय गठित किया गया था। इसका गठन सहकारी समितियों के लिए व्यवसाय करने में सुगमता हेतु प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने तथा बहुराज्यीय सहकारी समितियों के विकास को सक्षम बनाने के लिए किया गया है।
स्रोत –द हिन्दू