‘नगरपालिका ठोस और तरल अपशिष्ट में चक्रीय अर्थव्यवस्था’ रिपोर्ट
हाल ही में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) ने ‘नगरपालिका ठोस और तरल अपशिष्ट में चक्रीय अर्थव्यवस्था’ रिपोर्ट जारी की है ।
यह रिपोर्ट नगरपालिका ठोस और तरल अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए एक व्यापक, क्रियान्वयन योग्य तथा दूरदर्शी कार्य योजना प्रदान करती है।
इसका उद्देश्य भारत को रेखीय (लीनियर) “टेक मेक-वेस्ट’ मानसिकता की जगह ‘मल्टी लाइफ साइकिल सर्कुलर’ दृष्टिकोण को अपनाने को बढ़ावा देना है।
‘टेक मेक-वेस्ट’ मानसिकता से तात्पर्य है, कच्चे माल का संग्रह, फिर उससे वस्तु का उत्पादन और अंत में कुछ दिन उपयोग कर फेंक देने से है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष–
- भारत प्रतिदिन लगभग 45 लाख टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करता है। इसमें 35% सूखा अपशिष्ट है। सूखे अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा प्लास्टिक अपशिष्ट है।
- प्रतिदिन 26,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। इसमें से केवल 15,600 टन का ही पुनर्चक्रण किया जाता है। शेष प्लास्टिक कचरा लैंडफिल और जल निकायों में चला जाता है।
- नगरपालिका के ठोस, गीले और निर्माण से उत्पन्न अपशिष्ट के उपचार से प्रतिवर्ष लगभग 30,000 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न हो सकता है। साथ ही, यह रोजगार के अवसर भी पैदा करता है।
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें:
- सरकार को पुनर्चक्रण की गई सामग्री से बने उत्पादों पर GST और अन्य करों को 18% से घटाकर 5% कर देना चाहिए।
- पुनर्चक्रण सुनिश्चित करने के लिए गैर-खाद्य ग्रेड पैकेजिंग में 25% पुनर्चक्रण सामग्री का उपयोग अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- सीमेंट भट्टों को कोयले की जगह पुनर्चक्रण नहीं किए जाने वाले 25% दहनशील सूखे अपशिष्ट का उपयोग करना चाहिए।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमीउत्पादन और खपत का एक विशेष मॉडल है।
- इसमें जब तक तक संभव हो तब तक, मौजूदा सामग्री/ उत्पादों को साझा करना, फिर से उपयोग करना, मरम्मत करना, नवीनीकरण करना और पुनर्चक्रण करना शामिल है।
स्रोत –द हिन्दू