कावेरी नदी में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति
हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) द्वारा किये गए एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि कावेरी नदी में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति से मछलियों को नुकसान पहुंच सकता है ।
जल निकायों में माइक्रोप्लास्टिक्स के अध्ययन के उद्देश्य से, अलग-अलग जल प्रवाह वाले तीन भिन्न-भिन्न निकायों से नमूने एकत्र किए गए थे। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि जल की गति प्रदूषकों की सांद्रता को प्रभावित करती है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षः
- अध्ययन के लिए रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया गया था। अध्ययन के दौरान माइक्रोप्लास्टिक्स और साइक्लोहेक्सिल कार्यात्मक समूह वाले विषाक्त रसायनों का पता लगाया गया था।
- ये माइक्रोप्लास्टिक्स व रसायन मछलियों में बीमारियों के लिए जिम्मेदार पाए गए हैं।
- रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी एक हानि-रहित रासायनिक विश्लेषण तकनीक है। यह रासायनिक संरचना, चरण और आणविक परस्पर क्रियाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है।
- साइक्लोहेक्सिल समूह वाले रसायन, आमतौर पर कृषि और औषधि उद्योग में उपयोग किए जाते हैं।
- मछलियों की कोशिकाओं में ROS (रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज) नामक अस्थिर अणु पाए गए हैं। ये डीएनए को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- मछलियों में कंकाल विकृति, डीएनए क्षति, कोशिकाओं की समय से पहले मृत्यु, हृदय क्षति और मृत्यु दर में वृद्धि देखी गई है। यहां तक कि इन रोगाणुओं को हटाने के बाद भी इनमें ऐसी विकृतियां देखी गयी हैं।
- जिन स्थानों से नमूने लिए गए थे, वहां के जल में साइक्लोप्स, डैफनिया, स्पाइरोगाइरा, स्पाइरोचेटा और ई. कोलाई जैसे रोगाणु भी मौजूद थे। ये जल संदूषण के ज्ञात जैव-संकेतक (bio-indicators) हैं।
- लाखों लोग कावेरी नदी के जल पर निर्भर हैं। हालांकि, वर्तमान में पाई गई सांद्रता मनुष्यों के लिए खतरनाक नहीं है। लेकिन, इसके दीर्घकालिक प्रभावों से इंकार नहीं किया जा सकता है।
माइक्रोप्लास्टिक्स के बारे में:
- माइक्रोप्लास्टिक्स ऐसे प्लास्टिक उत्पाद हैं, जिनका आकार 5 मिमी से कम होता है। इनमें माइक्रोफाइबर (सबसे प्रचुर मात्रा में), टुकड़े, छरें, फलैक्स, शीट या फोम शामिल होते हैं।
- वे विभिन्न मार्गों से जल निकायों में प्रवेश करते हैं। इनमें वायुमंडलीय निक्षेप, दूषित भूमि से अपवाह या नगरपालिका का अपशिष्ट जल आदि शामिल हैं।
स्रोत –द हिन्दू