मेनस्ट्रीमिंग बायोडायवर्सिटी इन फॉरेस्ट्री रिपोर्ट
हाल ही में खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने ‘मेनस्ट्रीमिंग बायोडायवर्सिटी इन फॉरेस्ट्री’ रिपोर्ट जारी की गई है ।
मेनस्ट्रीमिंग बायोडायवर्सिटी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की प्रमुख संस्थाओं की नीतियों, रणनीतियों तथा कार्यों में जैव विविधता के विचारों को शामिल करने की प्रक्रिया है।
इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संधारणीय उपयोग को बढ़ावा देना है।
मेनस्ट्रीमिंग बायोडायवर्सिटी (जैव–विविधता को मुख्यधारा में लाना) के समक्ष बाधाएं और खतरेः
- निर्वनीकरणः प्रति वर्ष 10 मिलियन हेक्टेयर की खतरनाक दर से वनों की कटाई जारी है। यह वन हानि विशेष रूप से निम्न आय वाले उष्णकटिबंधीय देशों में देखी जा रही है
- वनों में गैर–कानूनी गतिविधियां– कुल वैश्विक इमारती लकड़ी की कटाई का लगभग 15-30 प्रतिशत गैर-कानूनी है। संरक्षित क्षेत्रों के बाहर स्थित वनों के संरक्षण पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
- अपर्याप्त क्षमताः विकासशील देश वन और जैव विविधता विनियमों को लागू करने में समस्याओं का सामना कर रहे हैं। संरक्षण गतिविधियों में देशज लोगों और स्थानीय समुदायों की कम भागीदारी है।
प्रमुख सिफारिशें –
- देशज लोगों और स्थानीय समुदायों के वन अधिकारों को मान्यता देनी चाहिए।
- इसके अतिरिक्त, उनके साथ लाभों के समान वितरण को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- प्राकृतिक वनों को किसी एक प्रजाति-विशेष (monospecific) के वनरोपण में बदलने को रोका जाना चाहिए।
- पादपों और वन्यजीवों के अत्यधिक दोहन को नियंत्रित करने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रजातियों का सतत प्रबंधन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- अन्य भूमि-उपयोग वाले क्षेत्रों में जैव-विविधता को मुख्यधारा में लाकर बहुक्षेत्रक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
- जैव-विविधता लाभों को बढ़ावा देने के लिए कम उत्पादन की दशा में मुआवजे जैसे आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) प्रतिबद्धताओं का लाभ उठाने के लिए बाजार-आधारित विकल्पों का सहारा लिया जा सकता है। इसके तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी को अपनाना एक उत्तम विकल्प है।
स्रोत – द हिंदू