इलेक्ट्रिक वाहन (EV) कम होगा वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन

इलेक्ट्रिक वाहन (EV) कम होगा वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन

हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार पता चला कि इलेक्ट्रिक वाहन (EV) वर्ष 2030 तक भारत में वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOC) के उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।

हाल ही में, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (मोहाली) में एक अध्ययन किया गया। इसका उद्देश्य वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए संभावित समाधानों का मूल्यांकन और विश्लेषण करना था।

इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2030 तक पेट्रोल, डीजल, एल.पी.जी. और सी.एन.जी. इंधन से चलने वाले सभी दोपहिया एवं तिपहिया वाहनों के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से निम्नलिखित परिणाम उत्पन्न होंगे:

  • मीथेन रहित वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (Volatile Organic Compounds: VOCs) के उत्सर्जन में 91 प्रतिशत तक की कमी होगी।
  • अन्य प्रदूषकों जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, PM5 और विषाक्त वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में क्रमशः 80 प्रतिशत, 44 प्रतिशत तथा 78 प्रतिशत की कमी होगी।

वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) के बारे में:

VOCs ऐसे यौगिक होते हैं, जिनमें उच्च वाष्प दाब और कम जल विलेयता होती है। इनकी संरचना ऐसी होती है कि ये कमरे के तापमान और दाब की सामान्य वायुमंडलीय परिस्थितियों में वाष्पित हो जाते हैं। बेंजीन, फॉर्मल्डहाइड और टॉल्यूइन इसके कुछ उदाहरण हैं।

VOCs के स्रोतः

  • प्राकृतिक स्रोतः पादप निम्नलिखित के लिए VOCs का उत्सर्जन करते हैं ।
  • मानव जनित स्रोतः पेंट, फार्मास्यूटिकल्स और रेफ्रिजरेंट के निर्माण में इनका उपयोग एवं उत्पादन किया जाता है। ये पेट्रोल और डीजल वाहनों से भी उत्सर्जित होते हैं।

VOCs के प्रभाव

  • पर्यावरण पर प्रभावः VOCs अन्य खतरनाक प्रदूषकों जैसे धरातलीय ओजोन, द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल, PM5 आदि के निर्माण को प्रेरित कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य पर प्रभावः इससे आंख, नाक और गले में जलन होती है। साथ ही, शरीर के अंगों को भी नुकसान पहुंचता है। इससे कैंसर भी हो सकता है।

VOCs के उत्सर्जन से निपटने हेतु उपाय:

  • वर्ष 1991 का जेनेवा प्रोटोकॉल वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन या उनके सीमा-पार प्रवाह के नियंत्रण से संबंधित है।
  • यह वर्ष 1979 के लंबी दूरी तक सीमा-पार वायु प्रदूषण पर कन्वेंशन से संबद्ध प्रोटोकॉल है।

वर्ष 1999 का गोथेनबर्ग प्रोटोकॉलः

  • इसका उद्देश्य अम्लीकरण, सुपोषण (Eutrophication) और धरातलीय ओजोन में कमी करना है। भारत में VOCs के लिए राष्ट्रीय स्तर का कोई निगरानी कार्यक्रम नहीं है।
  • बेंजीन एकमात्र VOC है, जिसे परिवेशी वायु-गुणवत्ता मानकों (ambient air-quality standards) में शामिल किया गया है।

स्रोत द हिन्दू

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