लोक अदालत के अधिकार

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लोक अदालत के अधिकार

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि लोक अदालतों के पास गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने की अधिकारिता नहीं है।

एस्टेट ऑफिसर बनाम कर्नल एच.वी. मनकोटिया (सेवानिवृत्त) वाद में, उच्चतम न्यायालय ने निर्दिष्ट किया है कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, (Legal Services Authorities Act: LSA) 1987 के प्रावधानों के तहत लोक अदालत की अधिकारिता, विवाद में शामिल पक्षों के मध्य समझौता या समाधान निर्धारित करना तथा उसे प्रभावी करना होगा।

एक बार समझौता या समाधान विफल हो जाने पर, लोक अदालत को उक्त वाद को उस न्यायालय को पुनः प्रेषित करना होगा, जहां से उसका संदर्भ प्राप्त हुआ है।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्दिष्ट किया है कि लोक अदालतों को गुण-दोष के आधार पर किसी मामले का निर्णय करने की कोई अधिकारिता नहीं है।

लोक अदालत के बारे में

  • यह वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्रों में से एक है। यह एक ऐसा मंच है, जहां विधिक न्यायालय में या मुकदमे से पूर्वस्तर पर लंबित विवादों/मामलों को परस्पर सहमति से निपटाया जाता है।
  • लोक अदालतों को LSA के तहत सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया है। LSA के तहत, लोक अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय को एक सिविल न्यायालय का निर्णयादेश माना जाता है। यह निर्णय सभी पक्षों के लिए अंतिम और बाध्यकारी होता है। इस प्रकार के निर्णय के विरुद्ध किसी भी न्यायालय मेंकोई अपील नहीं की जा सकती है।
  • जब लोक अदालत में मामला दायर किया जाता है, तो कोई न्यायालयी शुल्क देय नहीं होता है।

स्रोत –द हिन्दू

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