भारत में LGBTQ समुदाय के अधिकारों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट देश में समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णय
- NALSA बनाम भारत संघ, 2014: इस फैसले में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की पुष्टि की गई थी। साथ ही, IPC की धारा 377 को बरकरार रखा गया था। इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में लैंगिक पहचान को कानूनी मान्यता दी गई थी।
- के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017: इसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी ।
- शफीन जहां बनाम भारत संघ, 2018: इस मामले में अपने जीवनसाथी को चुनने के अधिकार को स्वतंत्रता और गरिमा के मौलिक अधिकार के एक पहलू के रूप में मान्यता दी गई थी ।
- शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ, 2018: जीवन साथी चुनने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई और इसे अनुच्छेद 19 और 21 का अभिन्न अंग माना गया।
- नवतेज जौहर बनाम भारत संघ, 2018: अदालत ने पुष्टि की कि LGBTQ समुदाय के सदस्य भी समान रूप से नागरिक हैं। साथ ही, इस बात को भी रेखांकित किया कि लैंगिक रुझान और लिंग के आधार पर कानून के अंतर्गत कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
- दीपिका सिंह बनाम केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), 2022: कोर्ट ने “एटिपिकल (असामान्य )” परिवारों को मान्यता दी थी। इसमें क्वीर विवाह को भी मान्य घोषित किया गया था। कोर्ट के अनुसार ऐसे परिवारों को पालन-पोषण की पारंपरिक भूमिकाओं तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है ।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस