हिमाचल प्रदेश में अपेक्षाकृत कम हिमपात होने से पर्यावरणविदों ने चिंता

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हिमाचल प्रदेश में अपेक्षाकृत कम हिमपात होने से पर्यावरणविदों ने चिंता

हाल ही में हिमाचल प्रदेश में अपेक्षाकृत कम हिमपात होने से पर्यावरणविदों ने चिंता प्रकट की है ।

स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज (हिमाचल प्रदेश) और अंतरिक्ष उपयोग केंद्र भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तहत एक प्रमुख केंद्र द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि:  “सतलुज, रावी, चिनाब और ब्यास सहित सभी प्रमुख नदी घाटियों में वर्ष 2019-20 की तुलना में वर्ष 2020-21 की शीत ऋतु में हिम के क्षेत्रफल में कुल मिलाकर 18.5 प्रतिशत की कमी देखी गई है” ।

हिमपात के प्रतिरूप में भी धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। चरम सर्दियों में हिमपात कुछ कम हो रहा है। वास्तव में हिमपात शीत ऋतु के अंतिम महीनों में या ग्रीष्म ऋतु के आरंभिक महीनों में अधिक हो रहा है।

हिमावरण का महत्व

  • हिमालय से उत्पन्न होने वाली अधिकांश प्रमुख नदियाँ और उनकी बारहमासी सहायक नदियाँ अपने प्रवाह के लिए मौसमी हिम के आवरण पर निर्भर करती हैं।
  • यह हिमाच्छादित क्षेत्रों के संचयन और अपक्षरण प्रतिरूप को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
  • हिमावरण में निरंतर गिरावट से मौसम चक्र प्रभावित होगा। इसके परिणामस्वरूप, अनियमित वर्षा, हिमपात, वर्धित उष्णता तथा उपभोग एवं विद्युत उत्पादन के लिएजल की अत्यल्प उपलब्धता आदि समस्याएं उत्पन्न होंगी।

हिमावरण में कमी के संभावित कारण

  • औसत वर्षा में कमी।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण वर्धित औसत तापमान।
  • व्यापक निर्माण और अन्य अविनियमित गतिविधियों के साथ तीव्रता से वनों की कटाई ।

स्रोत द  हिन्दू

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