लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल–वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO) परियोजना
भारत में पहली लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO) परियोजना के लिए भूमि सौंपी गई।
- हिंगोली राजस्व विभाग (महाराष्ट्र) ने 100 परियोजना के अंतर्गत कुछ अन्य संबंधित बुनियादी ढांचे सहित प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए जमीन सौंप दी है।
- वर्ष 2016 में, केंद्र सरकार ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों (GW) पर अनुसंधान के लिए LIGO-India (एक संयुक्त भारत-अमेरिका डिटेक्टर) को मंजूरी दी थी।
- परियोजना का निर्माण परमाणु ऊर्जा विभाग तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जाएगा। LOGO ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने और गुरुत्वाकर्षण, सापेक्षता, खगोल भौतिकी आदि सहित भौतिकी के कई क्षेत्रों पर प्रयोग करने के लिए एक विशाल वेधशाला है।
- इसे अमेरिका में दो साइट्स (वाशिंगटन और लुसियाना) पर संचालित किया जा रहा है।
LIGO- भारत परियोजना का महत्व
- यह वैज्ञानिकों को संपूर्ण अंतरिक्ष में GW म्रोतों का पता लगाने में सक्षम करेगी।
- यह भारत में प्रायोगिक विज्ञान की संभावनाओं और आकर्षण में वृद्धि करेगी। साथ ही, छात्रों को आकर्षित करने और उन्हें तकनीकी करियर बनाने के लिए प्रेरित करने में भी सहायक सिद्ध होगी।
- GW का पता लगाने के लिए आवश्यक भौतिक मापनों में अत्याधुनिक तकनीकें शामिल हैं, जिनके कई गैर-सैन्य अनुप्रयोग हैं।
गुरुत्वाकर्षण तरंगें गुरुत्वाकर्षण तरंगें स्पेस-टाइम में उत्पन्न लहरें हैं, जो ब्रह्मांड में कुछ सबसे उग्र औरऊर्जावान प्रक्रियाओं के कारण उत्पन्न होती हैं व प्रकाश की गति से गमन करती हैं।
वे अपने साथ अपनी प्रलयकारी उत्पत्ति के बारे में जानकारी के साथ-साथ गुरुत्वाकर्षण की प्रकृति के अमूल्य भेद भी समाहित करती हैं।
इनका निर्माण तब होता है, जब –
- पिंड बहुत तेज गति से गमन करता है,
- जब किसी तारे में असममित रूप से विस्फोट होता है (जिसे सुपरनोवा कहा जाता है),
- जब दो बड़े तारे एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं,
- जब दो ब्लैक होल एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं और आपस में विलीन हो जाते हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने वर्ष 1916 में अपने सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी।
स्रोत –द हिन्दू