भारत में सौर अपशिष्ट प्रबंधन नीति का अभाव

भारत में सौर अपशिष्ट प्रबंधन नीति का अभाव

हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने रेखांकित किया है कि भारत में सौर अपशिष्ट प्रबंधन नीति का अभाव है ।

भारत वर्तमान में सौर अपशिष्ट को इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (E-Waste) का एक हिस्सा मानता है। यह इसके लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं करता है।

  • सौर अपशिष्ट, बेकार पड़े सौर पैनलों द्वारा उत्पन्न इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट है।
  • अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक वैश्विक फोटोवोल्टिक अपशिष्ट की मात्रा 78 मिलियन टन तक हो जाएगी। निकट भविष्य में भारत, फोटोवोल्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले शीर्ष पांच देशों में से एक हो सकता है।
  • यदि इस अपशिष्ट को पूरी तरह से अर्थव्यवस्था में वापस उपयोग किया जाता है, तो पुनप्ति सामग्री का मूल्य वर्ष 2050 तक 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकता है।

भारत में सौर अपशिष्ट संबंधी तथ्य

  • सौर पैनलों की अनुमानित उपयोग योग्य अवधि 25 वर्ष है। यह विदित है कि भारत के सौर निर्माण उद्योग का आरंभ वर्ष 2010 में हुआ था। इसलिए, अधिकांश स्थापित सौर प्रणालियाँ अपनी कार्य-अवधि में ही हैं।
  • ऐसे में फिलहाल बड़ी मात्रा में सौर अपशिष्ट उत्पन्न होने की संभावना नहीं है।
  • हालांकि, सौर पैनल मॉड्यूल, परिवहन, स्थापना (installation) और संयंत्र संचालन के दौरान भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

सौर अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सुझाव

  • फोटोवोल्टिक (PV) पैनलों के लिए संधारणीय संपूर्ण उपयोग अवधि तक प्रबंधन नीतियां तैयार की जानी चाहिए।
  • अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना का विस्तार किया जाना चाहिए। विद्युत खरीद समझौते के तहत पर्यावरण के अनुकूल निपटान और सौर अपशिष्ट पुनर्चक्रण को भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • सौर अपशिष्ट के लैंडफिल पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, क्योंकि यह अपशिष्ट पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

अन्य देशों में सौर अपशिष्ट प्रबंधन की विधियां

  • यूरोपीय संघ (EU) ने विशेष रूप से फोटोवोल्टिक अपशिष्ट 8 के लिए विनियमों को अपनाया है।
  • वाशिंगटन और कैलिफोर्निया में विस्तारित उत्पादक के उत्तरदायित्व नियम को अपनाया गया है।
  • जापान और दक्षिण कोरिया ने विशेषतः फोटोवोल्टिक अपशिष्ट की समस्या के समाधान के लिए समर्पित कानून बनाने का संकेत दिया है।

स्रोत –द हिन्दू

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