करुप्पुर कलमकारी चित्रकारी और कल्लाकुरिची काष्ठ-नक्काशी को भौगोलिक संकेतक

करुप्पुर कलमकारी चित्रकारी और कल्लाकुरिची काष्ठ-नक्काशी को भौगोलिक संकेतक

हाल ही में तमिलनाडु की करुप्पुर कलमकारी चित्रकारी और कल्लाकुरिची काष्ठ-नक्काशी को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication: GI) टैग प्रदान किया गया है।

कलमकारी चित्रकारी शुद्ध सूती वस्त्र पर हस्तनिर्मित पेंटिंग होती हैं। इनका मुख्य रूप से मंदिरों में छत्रक आवरण, बेलनाकार लटकन, रथ के आवरण और असमनागिरी (फाल्स सीलिंग के कपड़े के टुकड़े) के लिए उपयोग किया जाता है।

कलमकारी का अर्थ है ‘कलम’ या ब्रश से कुछ बनाना।

यह कला 17वीं शताब्दी के प्रारंभ में नायक शासकों के संरक्षण में विकसित हुई थी।

कल्लाकुरिची काष्ठ-नक्काशी में शिल्पकारों द्वारा पारंपरिक शैलियों से प्राप्त अलंकरण और डिजाइनों का उपयोग किया जाता है।

प्राचीन काल में जब मदुरै एक महत्वपूर्ण नगर था, तब उस दौरान काष्ठ पर नक्काशी का कौशल एकस्वदेशी कला के रूप में विकसित हुआ था।

भौगोलिक संकेत (GI) टैग के बारे में:

  • एक GI उन उत्पादों के लिए उपयोग किया जाने वाला एक संकेतक है, जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति, गुण या प्रतिष्ठा होती है। ये विशेषताएं उन्हें उनके मूल क्षेत्र के कारण प्राप्त होती हैं।
  • इसे औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिए पेरिस कन्वेंशन के तहत शामिल किया गया है।
  • अधिनियम, 1999 {Geographical Indications of Goods(Registration and Protection) Act of 1999) द्वारा प्रशासित होता है।
  • तमिलनाडु में GI टैग प्राप्त अन्य उत्पादः कन्याकुमारी लौंग, डिंडीगुल ताले, महाबलीपुरम पाषाण प्रतिमा, नीलगिरी (परंपरागत) चाय, विरुपाक्षी पहाड़ी केला, तंजावुर गुड़िया, तंजावुर चित्रकारी, कांचीपुरम रेशमी साड़ी आदि।

स्रोत –द हिन्दू

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