किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

हाल ही में लोकसभा ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को पारित किया जो गंभीर अपराधों के दायरे में वृद्धि करता है |

यह विधेयक ,गैर-संज्ञेय अपराध को ,3 से 7 साल तक की सजा के साथ संज्ञेय का प्रावधान करता है |

संज्ञेय अपराध बनाम गैर संज्ञेय अपराध (Cognisable offence vs Non Cognisable offence)

संज्ञेय अपराध (Cognisable offence)

  • संज्ञेय अपराध वे अपराध हैं जो प्रकृति में गंभीर हैं। उदाहरण – हत्या, बलात्कार, दहेज मृत्यु , अपहरण, चोरी, विश्वास का आपराधिक हनन, अप्राकृतिक अपराध
  • संज्ञेय अपराध के लिए एक पुलिस अधिकारी बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार कर सकता है। यदि एक संज्ञेय अपराध किया गया है, तो पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना
  • जांच कर सकता है।

गैर संज्ञेय अपराध (NonCognisable offence)

  • गैर-संज्ञेय अपराध वे हैं जो प्रकृति में अधिक गंभीर  नहीं होते। उदाहरण – आक्रमण, धोखाधड़ी, जालसाज़ी, मानहानि।
  • एक गैर-संज्ञेय अपराध को आपराधिक प्रक्रिया संहिता में निम्नानुसार परिभाषित किया गया है, “गैर-संज्ञेय अपराध” का अर्थ है एक अपराध जिसके लिए, एक पुलिस अधिकारी को बिना वारंट के गिरफ्तारी करने का कोई अधिकार नहीं है।”
  • एक गैर-संज्ञेय अपराध / मामले के तहत, जांच शुरू करने के लिए, पुलिस अधिकारी को मजिस्ट्रेट की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है।

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के मुख्य बिंदु:

  • यह विधेयक किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 में संशोधन करता है। यह विधेयक उन बच्चों से संबंधित हैं जिन्होंने कानूनन कोई अपराध किया हो और जिन्हें देखभाल तथा संरक्षण की आवश्यकता हो।
  • गंभीर अपराध: गंभीर अपराध वे होते हैं जिनके लिए तीन से सात वर्ष तक की जेल की सजा दी जाती है। बिल में यह जोड़ा गया है कि गंभीर अपराधों में ऐसे अपराध भी शामिल होंगे जिनके लिए सात वर्ष से अधिक की अधिकतम सजा है, न्यूनतम सजा निर्दिष्ट नहीं की गई है ।
  • एडॉप्शन: अधिनियम में भारत और किसी दूसरे देश के संभावित दत्तक माता-पिता द्वारा बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। संभावित दत्तक माता-पिता द्वारा बच्चे को स्वीकार करने के बाद एडॉप्शन एजेंसी सिविल अदालत में एडॉप्शन के आदेश प्राप्त करने के लिए आवेदन करती है। अदालत के आदेश से यह स्थापित होता है कि बच्चा एडॉप्टिव माता-पिता का है। बिल में प्रावधान किया गया है कि अदालत के स्थान पर, जिला मेजिस्ट्रेट (अतिरिक्त जिला मेजिस्ट्रेट सहित) एडॉप्शन के आदेश जारी करेंगे।
  • एक्ट के अनुसार, अगर विदेश में रहने वाला कोई व्यक्ति भारत में अपने किसी संबंधी से बच्चा एडॉप्ट करना चाहता है तो उसे अदालत से एडॉप्शन का आदेश हासिल करना होगा। बिल इसमें संशोधन करता है कि इसके स्थान पर जिला मेजिस्ट्रेट को एडॉप्शन के आदेश जारी करने का अधिकार देता है।
  • अधिकृत न्यायालय: इसमें प्रस्ताव किया गया है कि पूर्व के अधिनियम के अंतर्गत सभी अपराधों को बाल न्यायालय के अंतर्गत शामिल किया जाए।
  • बाल कल्याण समिति : एक्ट में प्रावधान है कि देखरेख एवं संरक्षण की जरूरत वाले बच्चों के हित के लिए राज्य प्रत्येक जिले में एक या एक से अधिक बाल कल्याण कमिटी बनाये जायेंगे । एक्ट, बाल कल्याण कमिटी के सदस्यों को नियुक्त करने के लिए कुछ मानदंड भी स्थापित करता है, जैसे (i) वह व्यक्ति कम से कम सात वर्षों तक बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा या कल्याण के कार्यों से जुड़ा रहा हो, अथवा (ii) वह व्यक्ति बाल मनोविज्ञान, मनोरोग, कानून या सामाजिक कार्य की डिग्री वाला प्रैक्टिसिंग प्रोफेशनल हो।

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015:

  • यह अधिनियम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को प्रतिथापित कर के लाया गया है.
  • पूर्ववर्ती अधिनियम की शब्दावली में परिवर्तन करके ‘किशोर’ शब्द को ‘बालक’ अथवा ‘ कानून से संघर्षरत बालक’ के साथ परिवर्तित किया गया है। इसके अतिरिक्त ‘किशोर’ शब्द से जुड़े नकारात्मक अर्थ को भी समाप्त कर दिया गया है
  • यह जघन्य अपराधों में संलिप्त 16 से18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है। साथ ही कोई भी 16-18 वर्षीय जुवेनाइल जिसने जघन्य अर्थात् गंभीर अपराध किया हो उसके ऊपर बालिग के समान केवल तभी मुकदमा चलाया जा सकता है जब उसे 21 वर्ष की आयु के बाद पकड़ा गया हो।
  • यह प्रत्येक ज़िले में किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों के गठन का प्रावधान करता है। दोनों समिति (किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समिति) में कम-से-कम एक महिला सदस्य शामिल होनी चाहिये।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत बच्चे के विरुद्ध अत्याचार, बच्चे को नशीला पदार्थ देने और बच्चे का अपहरण या उसे बेचने के संदर्भ में दंड का प्रावधान किया गया है।

स्त्रोत: द हिन्दू

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