जम्मू और कश्मीर में परिसीमन
हाल ही में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष स्पष्ट किया है कि परिसीमन आयोग को जम्मू और कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा के पुनर्निर्धारण का प्राधिकार था।
- उच्चतम न्यायालय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में हालिया परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।
- याचिका में यह तर्क दिया गया है कि परिसीमन कार्य संविधान के अनुच्छेद 170 का उल्लंघन करता है। इस अनुच्छेद के प्रावधान के अनुसार देश में अगला परिसीमन वर्ष 2026 के बाद किया जाएगा।
- याचिका के जवाब में, केंद्र सरकार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन कार्य 2026 तक नहीं रोका जा सकता था, क्योंकि परिसीमन के पीछे मुख्य विचार नवगठित केंद्र शासित प्रदेश (UT) में तत्काल लोकतंत्र सुनिश्चित करना था ।
- भारत के चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया कि निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से संबंधित किसी भी कानून की वैधता के मामले में संविधान के अनुच्छेद 329 (a) के तहत न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है।
- मेघराज कोठारी बनाम परिसीमन आयोग मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि एक बार भारत के राजपत्र में आदेश प्रकाशित हो जाने के बाद, इस तरह के आदेश को न्यायालय के समक्ष प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन कार्य
- वर्ष 2019 से पहले, जम्मू-कश्मीर के संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन भारत के संविधान द्वारा शासित होता था और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन राज्य सरकार शासित करती थी।
- वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त कर दिया गया था। इसके बाद, विधानसभा और संसदीय, दोनों तरह के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन भारत के संविधान द्वारा शासित होगा ।
- परिसीमन, जनसंख्या में परिवर्तन को दर्शाने के लिए लोक सभा और विधान सभा क्षेत्रों की सीमाओं को पुनर्निर्धारित करने का कार्य है।
- परिसीमन से समान जनसंख्या समूह के लिए समान प्रतिनिधित्व और भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन सुनिश्चित किया जाता है। इससे किसी भी राजनीतिक दल को अनुचित लाभ प्राप्त नहीं होता।
- यह कार्य परिसीमन आयोग संपन्न करता है। आयोग के आदेशों को किसी भी न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती।
- इससे पहले वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित किए गए थे। परिसीमन कार्य पूर्ववर्ती जनगणना के आधार पर किया जाता है।
स्रोत – द हिन्दू