वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर अधिक परामर्श की जरूरत : दिल्ली उच्च न्यायालय
हाल ही में केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय (HC) से समय की मांग करते हुए कहा कि वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर अधिक परामर्श करने की जरूरत है।
भारत में वैवाहिक बलात्कार
- भारत में, वैवाहिक बलात्कार को किसी भी संविधि या कानून में परिभाषित नहीं किया गया है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375ए बलात्कार को परिभाषित करती है। उसमें कहा गया है कि एक पुरुष द्वारा बलपूर्वक अपनी पत्नी से लैंगिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, जब तक कि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम न हो। वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह आयु सीमा 18 वर्ष कर दी थी।
- यह इस धारणा पर आधारित है कि एक बार विवाह हो जाने के बाद यह मान लिया जाता है कि महिला ऐसे संबंध के लिए सहमत है। यह सहमति विवाह केअस्तित्व में रहने तक निरंतर रहती है।
यह महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है?
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार, भारतकी 4% महिलाओं ने सूचित किया कि उन्हें उनके पतियों द्वारा लैंगिक संबंध बनाने के लिए विवश किया गया था।
- इससे महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य एवं कल्याण से संबंधित प्रतिकूल व दीर्घकालिक परिणाम उत्पन्न होते हैं। इनमें चोट लगना, अवांछित गर्भधारण, खराब मानसिक स्वास्थ्य आदि शामिल हैं।
- वर्ष 2013 में, महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के समापन पर संयुक्त राष्ट्र समिति ने सिफारिश की थी कि भारत सरकार द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया जाना चाहिए।
- निर्भया कांड के बाद गठित जे. एस. वर्मा समिति ने भी इसकी सिफारिश की थी।
- वर्ष 2021 में, एक ऐतिहासिक फैसले में, केरल HC ने वैवाहिक बलात्कार को तलाक के लिए एक आधार के रूप में मान्यता दी थी।
स्रोत –द हिन्दू